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पर्युषणा - प्रथम दिन
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गुरुवाणी-२ संघ उत्साह से भाग ले रहा था । चम्पाबाई को वस्त्राभूषणों से विभूषित कर, पालकी में बिठाकर, बाजों की ध्वनि के साथ बड़े ठाट-बाट से हजारों की संख्या में जैन जनता पीछे चल रही थी, मन्दिर की ओर दर्शनार्थ ले जा रहे थे। बाजों की मधुर ध्वनि और जनता का कोलाहल राजसभा में बैठे हुए अकबर के कानों में पड़ा । अकबर ने अपने सेवक को आज्ञा दी - अरे ! जाकर देखकर आओ, यह तुमुल कोलाहल किस कारण से हो रहा है? सेवक भागकर गया और खोज करके वापस आया। उसने कहा - सम्राट ! चम्पा नाम की बाई ने छ: महीने के उपवास किये हैं। उसके बहुमान में यह जुलूस निकल रहा है। जैनों का उपवास अर्थात् दिन में अमुक समय ही गर्म पानी पीने का होता है। रात को वह भी बन्द हो जाता है । अरे! मुसलमानों में रोजे आते हैं तो उसमें दिन को नहीं खाते हैं, किन्तु रात को तो पेट भरकर खाते हैं। एक महीने का रोजा तो जैसेतैसे कर लिया जाता है, किन्तु यह औरत छ: महीने तक बिना अन्न के कैसे रह सकती है? बादशाह ने ऐसा सोचकर परीक्षा के लिए चम्पा को शाहीमहल में रखा। उसके चारों ओर अपने सेवकों को पहरे पर लगा दिया । चम्पा की तप-उपासना असाधरण थी । वह दिवस को सोती नहीं थी। धर्माराधना ही करती थी। रात को कुछ समय के लिए विश्राम करती थी ताकि तनिक भी थकावट या धर्म - कार्यों में रुकावट न आए। चम्पा के चेहरे पर आंतरिक तेज के दर्शन होते थे । दादा आदिनाथ और हीरसूरीश्वरजी महाराज के नाम का जाप चालू था। एक समय अकबर स्वयं चम्पा की दिनचर्या देखने के लिए आया । चम्पा के मुख पर तप का तेज चमक रहा था। बादशाह की जो कल्पना थी उसके विपरीत ही यहाँ दर्शन हो रहे थे । आह या चीख को कहीं स्थान नहीं था । चम्पा की कलि के समान चम्पा श्राविका का मुखकमल खिल रहा था । बादशाह चम्पा से पूछता है - यह तपस्या तुम किसके आधार से कर रही हो? चम्पा ने उत्तर दिया - देव और गुरु की कृपा से कर रही हूँ। अकबर ने पुन: पूछा