SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्युषणा - प्रथम दिन २९ 1 गुरुवाणी - २ देखकर विचार करते हैं कि निश्चित रूप से भविष्य में यह राजा होगा और शासन की शोभा - वर्धन के लिए यह अत्यन्त उपयोगी होगा । ऐसा सोचकर कुमारपाल को आश्रय देते हैं । उसी समय सिद्धराज जयसिंह के गुप्तचरों को ऐसी सूचना मिल जाती है कि कुमारपाल उपाश्रय में ही है। तत्काल ही वे गुप्तचर आचार्य महाराज के पास आते हैं। आचार्य महाराज को भी इस बात की गंध लगते ही वे कुमारपाल को उपाश्रय के तलघर में ताडपत्रों के समूह के नीचे छिपा देते हैं। गुप्तचर आकर महाराज को पूछते हैं। समय सूचकता का उपयोग करके आचार्य महाराज एक ताडपत्र के टुकड़े पर 'कुमारपाल तो ताडपत्र में है।' इस प्रकार हेमचन्द्राचार्य कुमारपाल को बचा लेते हैं और सिद्धराज के महामन्त्री उदयन को सौंप देते है । स्वयं के राजा के द्रोही को घर में रखना कितना कठिन होता है? सिद्धराज को संकेत मिल जाता तो मन्त्री का क्या होता? आप सोच सकते है । ऐसी विकट परिस्थिति में भी आचार्य भगवन् के आदेश से मन्त्री उदयन कुमारपाल की सुरक्षा करता है । इस प्रकार रखड़ते-रखड़ते कुमारपाल महाराजा पचास वर्ष की उम्र में गद्दीनशीन होते हैं । 'एक रखड़ने वाला आदमी राजा बना है' ऐसा समझकर अन्य राजागण अपना सिर ऊँचा करने लगे। उन सबको अपने अधीन करने में कुमारपाल के १६ वर्ष बीत गये । इस व्यस्तता में अपने जीवन के महोपकारी आचार्य महाराज को कुमारपाल भूल गए । आचार्य महाराज पाटण पधारते हैं। उन्होंने मन्त्री से पूछा - क्या कुमारपाल कभी हमें याद करता हैं या नहीं? मन्त्री ने उत्तर दिया- साहेब ! वे कभी भी याद नहीं करते हैं। दूसरे दिन आचार्य महाराज ने मन्त्री द्वारा कुमारपाल को कहलाया - आज तुम जिस रानी के महल में सोने के लिए जाने वाले हो वहाँ मत जाना । कुमारपाल ने विचार किया - यह महापुरुष का कथन है इसीलिए इन वाक्यों के भीतर कोई न कोई रहस्य अवश्य होना चाहिए। ऐसा सोचकर कुमारपाल सोने के लिए उस महल में नहीं गया। उसी रात में महल पर बिजली
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy