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पर्युषणा-प्रथम दिन
गुरुवाणी-२ चाचिक गुस्से में पागल हो जाता है और उसी समय चलकर खंभात आता है। आचार्य से पुत्र की मांग करता है। आचार्य महाराज उस चाचिक को मन्त्री उदयन के पास भेज देते हैं । मन्त्री चाचिक को हर तरह से समझाते हैं परन्तु चाचिक गुस्से में ताव खाया हुआ था अतः वह अपने हठ पर अडा रहा कि मुझे तो अपने लड़के को घर ले जाना ही है। अन्त में उदयन मन्त्री कहता है - सामने तीन कमरे हैं जो कि हीरा माणक रत्न से भरे हुए हैं, इनमे से जितना भी आपको चाहिए ले जाइए, केवल इतना ही नहीं, मेरे तीन पुत्र हैं उनमें से आप जिसे चाहते हैं चांग के स्थान पर उस पुत्र को ले जाइए। यह सुनने के साथ ही चाचिक को अपने पुत्र की महत्ता समझ में आती है, उसका गुस्सा ठंडा पड़ जाता है और वह मन्त्री को कहता है - मैं अपने पुत्र को बेचने के लिए नहीं आया हूँ। मैं प्रसन्नता के साथ इसको आज्ञा देता हूँ कि वह आचार्य का शिष्य बने । तत्पश्चात् उदयन मन्त्री उस चांग का दीक्षा महोत्सव करते हैं । प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार हेमचन्द्रसूरिजी की दीक्षा कर्णावती (अहमदाबाद) में होती है। सिद्धराज जयसिंह के पिता कर्णराज ने कर्णेश्वर महादेव का मन्दिर
और कर्णसागर नाम का बड़ा सरोवर बनवाया था इसी कारण वहाँ कर्णावती नाम की नगरी बसी थी। वहाँ हेमचन्द्रसूरिजी महाराज की दीक्षा हुई ऐसा प्रबन्धचिन्तामणि में है। हमें आचार्य भगवन् कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरिजी महाराज की भेंट मिली है। इनके ग्रन्थों का वाचन करते हैं तो ऐसा लगता है कि ये आचार्य थे या साक्षात् सरस्वती स्वरूप थे।
ये आचार्य भगवन् एक समय खंभात में विराजमान थे। खंभात में उनके ग्रन्थों की प्रतिलिपि का काम चल रहा था। ताडपत्रों पर ग्रन्थ लिखवाये जा रहे थे। उस समय कुमारपाल सिद्धराज जयसिंह के भय से भागते फिर रहे थे। भागते हुए वे खंभात में आते हैं और उपाश्रय में आचार्य महाराज के पास जाते हैं आचार्य महाराज उनके लक्षणों को