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________________ २६ पर्युषणा-प्रथम दिन गुरुवाणी-२ आयोजित होते रहते हैं। उसी कारण से पाँच दिन तक कल्पसूत्र और अन्य तीन दिन श्रावक के कर्त्तव्यों का वांचन होता है। इन आठ दिवसों की महिमा जैन समाज में अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। चाहे जैसे ही संयोग हो फिर भी इन आठ दिवसों की आराधना तो आबालवृद्ध सभी करते हैं। तीन विभाग.... श्रावक के तीन वर्ग हैं - सदिया, कदिया, भदिया। सर्वदा आराधना करने वाला वर्ग सदिया कहलाता है। किसी तिथी विशेष और पर्व के दिवसों में आराधना करने वाला कदिया कहलाता है। पूर्व समय में तो तिथियों का महत्त्व खूब था। आज तो तारीख और वार का महत्त्व होने से तिथी का महत्त्व गौण हो गया है। आज तो कोई भी कार्य करना हो तो कहेंगे - रविवार को रखिए। अन्य वारों में तो कोई उपस्थिति नहीं होगी। भादवे महीने में ही उपाश्रय मे आने वाले भदिया कहलाते हैं। चाहे जैसा नास्तिक हो किन्तु सम्वत्सरी का प्रतिक्रमण तो करता ही है। पर्युषण के आठ दिनों में भी महापुरुषों ने ऐसे कर्त्तव्य बतलाए हैं कि उनके द्वारा १२ महीने का पाथेय / नाश्ता बांध ही लेता है। श्रावक के पाँच कर्त्तव्य हैं:- १. अमारि प्रवर्तन, २. साधर्मिक वात्सल्य, ३. परस्पर क्षमायाचना, ४. अट्ठम तप की आराधना, ५. चैत्य परिपाटी। इन पाँचो कर्तव्यों की आराधना नियमित रूप से करनी चाहिए। प्रारम्भ के तीन कर्तव्यों की तो प्रतिदिन आराधना करनी चाहिए। अब प्रथम कर्त्तव्य पर विचार करते हैं। अमारि प्रवर्तन - युगल जोड़ी सम्पूर्ण गुजरात में १८ देशों में अमारि की प्रवर्तना करवाने वाले पूज्य हेमचन्द्रसूरिजी महाराज तथा कुमारपाल महाराजा हैं। ये आचार्य भगवन् हमको साधर्मिक वात्सल्य में से मिले हैं। धन्धुका में चाचिक नाम का मोढ जाति का वणिक रहता था। उसकी पत्नी का नाम पाहिनी था। पाहिनी को किसी रात में स्वप्न आया। स्वप्न में उसने देखा कि मेरे पास
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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