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गुरुवाणी - २
पापभीरुता
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धर्म स्वीकार करता है और अन्त में देवलोक को जाता है । इसी प्रकार पापभीरु श्रावकों को वंश-परम्परा से आया हुआ पापमय व्यापार हो तो नहीं करना चाहिए। पाप से डरने वाला व्यक्ति ही धर्म का आचरण कर सकता है। पाप से डरने वाली आत्मा ही अनेक अकरणीय कार्यों से बच सकती है और वह किसी का बुरा हो इस प्रकार की कामना नहीं करता है। उसकी सद्भावना निरन्तर बढ़ती जाती है, कोई उसका दुश्मन नहीं रहता है, अत: वह अजातशत्रु बनकर सम्यक् प्रकार से धर्म की आराधना कर सकता है।
जगत् के पदार्थों की चाहे जितनी खोज हो, चाहे जितने पदार्थों को हम आँखों में बसाने के लिये तैयार हो परन्तु कब तक? आँख मूंद जाने तक ही न? समस्त शोध / खोज कुछ समय तक और कुछ प्रश्नों का ही समाधान कर सकती है किन्तु जन्मजन्म के प्रश्न का क्या समाधान कर सकती है? नहीं, प्रत्येक जन्म के प्रश्न का उत्तर देने की शक्ति केवल धर्म में ही है । दूसरा कोई भी पदार्थ कितना ही अमूल्य क्यों न हो किन्तु वह समाधान नहीं
कर सकता ।