SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभु के साथ चित्त जोड़ो भादवा वदि १० पूर्वजन्मों के संस्कार .... चेतना तीन प्रकार की होती है - १. जाग्रत, २. अर्द्धजाग्रत, ३. अजाग्रत (सुषुप्त)। जाग्रत और अर्द्धजाग्रत चेतना की अपेक्षा अचेतन अर्थात् सुषुप्त चेतना अनेक दोषों से युक्त है। जिस प्रकार वर्षा आती है और जंगल में स्वतः ही घास उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार अचेतन मन में रही हुई वासनाएं कुसंस्कार का निमित्त मिलते ही तत्काल ही बाहर आ जाती है अर्थात् सक्रिय हो जाती है। यह जीवात्मा अनेक योनियों में भटक कर आयी है। सांप की योनि में फुकार मारकर अनेकों को डंसा होगा। बिच्छु के भव में डंक मारे होंगे। गधे की योनि में लातें मारी होंगी। कुत्ते की योनि में भों-भों किया होगा। इस प्रकार प्रत्येक योनि में उस योनि के अनुरूप तद्-तद् स्वभावों का आचरण किया होगा। आयुष्य पूर्ण होने पर उस योनि के शरीर के छूट जाने पर भी जो स्वभाव के गाढ़ संस्कार होते हैं वे भीतर ही रह जाते हैं । शरीर और जीव के बीच में वस्त्र के समान सम्बन्ध है। वस्त्र के जीर्ण होने पर मनुष्य उसका त्याग कर नया वस्त्र धारण कर लेता है। क्या वस्त्र बदलने के साथ उसका स्वभाव भी बदल जाता है? शोक के समय मनुष्य काले वस्त्र पहनता है, उससे क्या वह कृष्णलेश्या वाला बन जाता है? सफेद वस्त्र पहनने से क्या वह शुक्ललेश्या वाला बन जाता है? नहीं, वस्त्र परिवर्तन मात्र से अन्तर में रही हुई जीवात्मा नहीं बदलती है। उसी प्रकार उस-उस योनि के शरीर रूपी वस्त्र बदलने पर भी उसके अन्दर रहे हुए स्वभाव में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। आज हमने मानव शरीर रूपी वस्त्र धारण किया है किन्तु हमारे अन्तर में ८४ लाख योनि के स्वभाव पड़े हुए हैं। ये स्वभाव हमारे
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy