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________________ १२ पापभीरुता गुरुवाणी-२ इसको दूर करने का उपाय पूछा । अभयकुमार ने कहा - तुम्हारे पिता की समस्त धातुएं विपरीत हो गई हैं अतः उनके शरीर पर चन्दन के स्थान पर विष्टा का विलेपन करो, कोमल शय्या के स्थान पर कांटो वाली शय्या पर सुलाओ, शीतल जल के स्थान पर गरमागरम पानी पिलाओ और कर्ण मधुर संगीत के बदले गधे और ऊंट का स्वर संगीत सुनाओ। अभयकुमार के परामर्श के अनुसार सुलस ने उसी प्रकार सेवा करनी प्रारम्भ की। इस प्रकार की सेवा से वह कालसौकरिक कसाई बहुत प्रसन्न हुआ और उसने कहा - पुत्र! इस प्रकार की सेवा तूने आज तक क्यों नहीं की? यह सब कुछ मुझे बहुत अच्छा लगता है। कुछ समय के पश्चात् मृत्युवरण कर वह सातवीं नरक में गया। उसके क्रियाकर्म के पश्चात् स्वजनों ने सुलस से कहा - भाई! तेरे पिता का जो व्यापार चला आ रहा था उसे तू सम्भाल ले। सुलस ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उसने अपने पिता की अन्तिम स्थिति देखी थी। वह समस्त स्वजनों को समझाता है किन्तु वे समस्त स्वजन उस पर दबाव डालते हैं और कहते हैं - तू क्यों डरता है? तेरे दु:ख में हम सब भागीदार बनेंगे। उन सबको शिक्षा देने के लिए सुलस एक कुहाड़ा मंगाता है और सबके देखते हुए अपने पग पर उस कुहाड़े से वार करता है। तत्काल ही वेग से खून निकलता है और चारों तरफ खून ही खून नजर आता है। वह सुलस अपनी माता आदि को कहता है - मुझे बहुत पीड़ा हो रही है मुझे किसी प्रकार बचाओ। मेरी इस अपार वेदना में कोई भागीदार बनो और कुछ वेदना को बांट लो। स्वजन कहते हैं - अरे ! तूने जान बुझकर अपने पग पर कुहाड़ा मारा है तो अब उस पीड़ा से चिल्लाने का क्या अर्थ है, चिल्लाना बेकार है। अरे, वेदना कोई ले सकता है क्या? सुलस कहता है - यदि आप लोग मेरी वेदना में भागीदार नहीं बन सकते तो बतलाईये मैं जो पाप करूँगा तो उसमें आप कैसे भागीदार बन सकोगे? मुझे पाप का कार्य करके नरक में नहीं जाना है। अन्त में वह सुलस अभयकुमार के साथ भगवान के पास जाकर श्रावक
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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