SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुवाणी-२ पापभीरुता गरीब भोजक की बनाई हुई आरती आज गांव-गांव में गाई जाती है। क्योंकि, उस आरती में उसके पवित्र भाव समाविष्ट हैं। आज करोड़ों रुपयों की बोली बोली जाती है किन्तु वह भावरहित होती है। अनेक बार देखा-देखी - प्रेरणा से, प्रतिस्पर्धा से बोली बोलते हैं। अन्याय का धन चला जाता है साथ ही वह न्यायोपार्जित धनभी ले जाता है और बदले में अशान्ति, क्लेश और रोग आदि प्रदान कर जाता है। अतः पापभीरु श्रावकों को पाप-वृद्धि करने वाले और अशान्ति को पैदा करने वाले व्यापार का त्याग करना चाहिए। चाहे वह व्यापार वंश-परम्परा से क्यों न चला आया हो। जिस प्रकार सुलस ने त्याग किया वैसे ही । वह सुलस कौन था? पापभीरु सुलस.... राजगृह नगर में कालसौकरिक नामक कसाई रहता था। उसके पुत्र का नाम सुलस था। वह कालसौकरिक कसाई प्रतिदिन ५०० पाड़ों (भैंस के बछड़ों) का वध करता था। इस दुष्कर्म से उसने सातवीं नरक के योग्य पापों का बंधन किया। उसका अन्तकाल नजदीक आ गया। कहा जाता है - जेवी गति तेवी मति। अनेक जीवों के घात से नरक गति का आयुष्य बन्ध जाने के कारण अन्त समय में उसकी विपरीत मति हुई। उसके शरीर की समस्त धातुएं और पाँचों इन्द्रियों से वह शक्तिहीन हो गया। उसके शरीर में अत्यन्त पीड़ा होने लगी। सुलस पिता की खुब सेवा करता है। पिता के शरीर में उत्पन्न दाहज्वर को शान्त करने के लिए चन्दन आदि का विलेपन करता है, कोमल शय्या पर सुलाता है, शीतल जल पिलाता है किन्तु ऐसी सुन्दर सेवा भी उसको सुख प्रदान करने के स्थान पर दुःख ही प्रदान करती है। सुलस पिता की वेदना व्यथा से अत्यधिक व्यथित होता है। वह सुलस कसाई का पुत्र होने पर भी बहुत ही संस्कारशील था, विनयी था और मन्त्री अभयकुमार का मित्र था। उसने अपनी मनोव्यथा बुद्धिनिधान अभयकुमार को सुनाई और उससे
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy