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________________ पापभीरुता भादवा वदि ९ सामान्य, विशेष का निर्माता है ... विशेष का निर्माण सामान्य से होता है। मिट्टी से घड़ा, पत्थर से प्रतिमा। मिट्टी सामान्य है और घड़ा विशेष है। पत्थर सामान्य है और प्रतिमा विशेष है। मिट्टी के अभाव में घड़ा कैसे बन सकता है। पत्थर ही न होगा तो प्रतिमा कैसे बनेगी । उसी प्रकार सामान्य धर्म न होगा तो विशेष धर्म कहाँ से आएगा। अतः पूर्व में सामान्य धर्म में प्रवेश होना चाहिए। सामान्य धर्म सबके अनुकूल होता है । उस सामान्य धर्म में जीवन को जीने की कला प्राप्त होती है और विशेष में सामायिक पोषह, प्रतिक्रमण आदि विविध अनुष्ठान आते हैं। पहले सामान्य होंगे तभी तो विशेष बन सकेंगे, किन्तु आज सामान्य धर्म प्रायः लुप्त हो गया है। पापभीरु . धर्म का आचरण करने वाला श्रावक कैसा होना चाहिए इसका वर्णन चल रहा है। उसमें धर्मार्थी श्रावक का छठा गुण पापभीरुता है । जिसके जीवन में पापों के प्रति भय होगा वही योग्य बन सकता है । आज तो प्राय: यह देखने में आता है कि अधिकांशतः पाप के व्यापार श्रावकों के ही हाथ में है । कहलाता है श्रावक, किन्तु उसका व्यापार १५ कर्मादानों से ही चलता रहता है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों / कारखानों का मालिक होता है। जिसमें प्रतिदिन करोड़ो जीवों की हिंसा होती है। हम एक कारखाने में गये थे। उस कारखाने में कप-प्लेट बनते थे । कप-प्लेट के स्वरूप को देने के लिए मिट्टी को कई दिनों तक गीली रखी जाती है और बाद में उस गिली मिट्टी को सांचे में डालते हैं। कई दिनों के बाद जब वह मिट्टी सूख जाती है तो उसे भट्टी में डाल दिया जाता है । वह भट्टी चौवीसों घन्टे जलती रहती है। उस भट्टी की तपन से १० फुट दूर खड़े हों तब भी -
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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