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________________ गुरुवाणी-२ अक्रूरता ५ का बॉयलर फट जाएगा, किन्तु ससुरजी तो चुपचाप भोजन कर खड़े हो गये। यह देखकर घर के समस्त सदस्य स्तब्ध रह गए । ससुरजी का बदला हुआ स्वभाव देखकर पुत्रवधू उनकी खूब भक्ति करने लगी। घर के लोग एवं संघ के लोग भी उनके स्वभाव की प्रशंसा करने लगे। एक समय उनके भतीजे ने उनकी परीक्षा ली। उसने अपने घर भोजन रखा, समस्त सदस्यों को आमंत्रित किया किन्तु काका को आमंत्रित नहीं किया। आमंत्रित नहीं होते हुए भी काका भोजन के समय उसके वहाँ पहुँच गये। भोजन करने बैठे उसी समय भतीजे ने अपने काका का तिरस्कार किया, तब भी काका ने तनिक भी गुस्सा नहीं किया। अन्त में भतीजा काका के चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा और उनकी अत्यधिक प्रशंसा की । कषाय का त्याग करने से उस वृद्ध का जीवन धर्म से ओत-प्रोत हो गया और वह अन्त में मृत्यु को प्राप्त कर देवलोक में गया। वस्तुतः जो व्यक्ति स्वभाव से अक्रूर होता है वही सच्चे अर्थ में धर्म की आराधना कर सकता है। जैसे-तैसे व्यक्ति को धर्म जैसा दुर्लभ रत्न कदापि प्राप्त नहीं हो सकता । उसको प्राप्त करने के लिए योग्यता अर्जित करनी पड़ती है। इस प्रसंग को हम कल प्रतिपादन करेंगे। आप जानते हैं हमें धर्म का फल क्यों नहीं मिलता? क्योंकि हम गुणों तक पहुंचते ही नहीं केवल बाहय धर्म में ही लीन बने हुए हैं।
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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