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________________ सुदाक्षिण्यता गुरुवाणी-२ १०२ राजबीज है न? शय्यातर श्राविका उस पुत्र का लालन-पालन करने लगी। रानी तो पुत्र को जन्म देकर वापिस साध्वी मण्डल में आ गई थी । बाल- संस्कारों के लिए क्या करोगे....? पुत्र का नाम खुदक कुमार रखा गया । वह आठ वर्ष का हुआ। उसी समय से उसके हृदय में धर्म के संस्कारों का सिंचन होने लगा । बालक का हृदय बिना लिखी हुई पत्थर की पट्टी के समान होता है। उसमें आप जिस प्रकार का लिखना चाहोगे उसी प्रकार का लिखा जाएगा। आज के लड़कों का संस्कार प्रायः समाप्त हो चुका है। इसमें माँ-बाप का ही अधिक हिस्सा है। माता-पिता अपने लड़के को डाँटकर स्कूल भेजेंगे किन्तु क्या डाँटकर उसको धार्मिक पाठशाला भेजते हैं ? स्कूल नहीं जाएगा तो उसका भविष्य बिगड़ेगा, ऐसा मानते हैं किन्तु धर्म के संस्कार नहीं प्राप्त होंगे तो उसका यह जीवन ही नहीं अनेक जीवन बिगड़ेंगें। इसका कभी विचार आता है क्या ? मेरा पुत्र पढ़कर वकील बने, डॉक्टर बने, ऑफिसर बने ऐसी तो इच्छा करते हैं किन्तु क्या ऐसी भी कभी इच्छा करते हैं कि मेरा पुत्र महान् साधु बनकर अनेकों का तारणहार बने ? अब यह आठ वर्ष के बालक को प्रदत्त संस्कार कहाँ ले जाते हैं और दाक्षिण्यता के कारण इसके जीवन में कैसा उलट-फेर होता है? यह आगे देखेंगे। श्रावक के तीन वर्ग हैं- सदिया, कदिया, भदिया । सर्वदा आराधना करने वाला वर्ग सदिया कहलाता है । तिथी विशेष और पर्व दिवसों में आराधना करने वाला कदिया कहलाता है और सिर्फ भादवे महिने में ही उपाश्रय में आकर आराधना करने वाला भदिया कहलाता है।
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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