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________________ स्वार्थी संसार भादवा सुदि १३ संसार पूर्णतः स्वार्थ से भरा हुआ है। जिसके पीछे जीवन के अमूल्य क्षण खर्चकर, तन मन धन सब कुछ बरबाद किया वही व्यक्ति धोखा दे तो उसकी कैसी दशा होगी? वह दशा न तो सहन करने के योग्य होगी, न कहने योग्य होगी और न रहने योग्य होगी। फिर भी लोग चर्चा करते हैं कि क्या करें, साहब ! समझते हैं कि संसार स्वार्थ से भरा हुआ है। फिर भी उसे हमें निभाना पड़ता है । इस प्रकार कहकर मन को संतुष्ट अवश्य करते है फिर भी इस संसार पर उन्हें घृणा उत्पन्न नहीं होती है यही मोह मनुष्य को संसार में भ्रमण कराता है । जगत् के समस्त प्राणियों को देखो, सब लोग स्वयं के स्वार्थजनित विचारों को ही करते हैं - जबकि साधु का जीवन पूर्णतः परमार्थ से परिपूर्ण होता है । किसी मक्खी या कीड़ी को भी पीड़ा नहीं होनी चाहिए। समागम में आने वालों का सदैव भला हो यही कामना करते हैं । जगत् के जीवों का सदैव भला हो ऐसा सोचने वाले अजितसेनसूरिजी महाराज सावत्थी नगरी में पधारते हैं। माता साध्वीजी के साथ खुदग कुमार भी आचार्य भगवान् को वन्दन करने के लिए आते हैं । बाल्यवय में ही संयम ग्रहण करने की अदम्य इच्छा से खुदगकुमार आचार्य महाराज के पास प्रव्रज्या की याचना करते हैं । माता साध्वी की भी यही इच्छा है कि मेरा पुत्र महान शासन प्रभावक बने । इस भावना से माँ ने अनुमति दे दी। आठ वर्ष की छोटी उम्र में ही वह संयम जीवन को स्वीकार करता है । सुन्दर आराधना पूर्वक निरतिचार संयम - जीवन का पालन करता है। १२ वर्ष का संयम पर्याय हो गया । २० वर्ष की तरुणावस्था आ गई। एक बार वह मुनि कहीं बाहर जाते हैं वहाँ तरुणमित्रों को क्रीडा करते हुए देखते हैं। अनादिकाल के संस्कार आत्मा में पड़े हुए हैं । क्रीड़ा को
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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