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मूल तत्त्व
गुरुवाणी-१ सत्य....
जिस मनुष्य की सत्य की साधना पराकाष्ठा पर पहुँची हुई हो तो उसमें वचन सिद्धि प्रकट हो जाती है। अरे, वह साधक यदि गूंगे मनुष्य के सिर पर हाथ भी रख दे तो वह बोलने लगता है, ऐसी सिद्धि उनमें प्रकट हो जाती है । इस विषय में युधिष्ठिर सत्यवादी के रूप में प्रख्यात है। नरो वा कुञ्जरो वा ....
एक समय जब कौरव और पांडवों का युद्ध चल रहा था। सामने द्रोणाचार्य बाणों की वर्षा कर रहे थे। उस समय गुरु द्रोणाचार्य को युद्ध के मैदान से कैसे हटाया जाए? इस प्रश्न पर कृष्ण ने आकर युधिष्ठिर से कहा- आप यदि तनिक भी झूठ बोलें तो यह कार्य सहजता से हो सकता है। तुम्हें यही कहना है- अश्वत्थामा मर गया। अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र है। पुत्र-मरण के आघात से वे अपने समस्त शस्त्र नीचे रख देंगे। बहुत समझाने पर युधिष्ठिर तैयार हुए। संयोग ऐसा बना कि उस युद्ध स्थल पर अश्वत्थामा नाम का एक हाथी भी था। वह हाथी युद्ध में मारा गया। उस समय सब लोग जोर-जोर से चिल्लाकर बोले - अश्वत्थामा मारा गया। द्रोणाचार्य के कानों में भी यह आवाज पहुँची, वे अश्वत्थामा शब्द से अपने पुत्र की कल्पना कर बैठे। यह बात सत्य है या नहीं! इसकी प्रतीति करने के लिए चलते हुए युद्ध में द्रोणाचार्य युधिष्ठिर के पास आते हैं और पूछते हैं- हे युधिष्ठिर! क्या मेरे पुत्र अश्वत्थामा का मरण हो गया? द्रोणाचार्य के शब्द सुनते ही युधिष्ठिर के समक्ष धर्म संकट पैदा हो गया, इसीलिए युधिष्ठिर ने कहा- नरो वा कुञ्जरो वा। अर्थात् अश्वत्थामा की मृत्यु हुई है वह मनुष्य था या हाथी मै नहीं जानता। बस तनिक असत्य उच्चारण करते ही युधिष्ठिर का रथ सत्य के कारण जो जमीन से ऊपर चलता था वह एकदम नीचे आ गया। इसका कारण यह है कि युधिष्ठिर मन में जानते थे कि अश्वत्थामा हाथी की मौत हुई है। जीवन में एक तनिक सा