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________________ गुरु-अपरिश्रावी श्रावण सुदि ३ नौहरी की परख . . . . जिस प्रकार जौहरी हीरे को सूक्ष्मबुद्धि से देखता है, परीक्षण करता है तभी वह जौहरी सच्चा हीरा परीक्षक गिना जाता है, उसी पकार यहाँ सब अनर्थों के मूल को दूर करने वाला, धर्म रूपी हीरे का सच्चा परीक्षण करने वाला भी सूक्ष्मबुद्धि सम्पन्न मनुष्य गिना जाता है। भूल स्वीकार = समाधि . . . . समाधि मरण कब मिलता है? मनुष्य के शरीर के किसी भी अंश में कहीं दुःख दर्द हो तो वह स्वस्थता का अनुभव नहीं करता है, जो स्वस्थता प्राप्त करनी है तो उसे शल्य/कांटे को दूर करना ही चाहिए। उसी प्रकार मरण के समय समाधि चाहिए तो जीवन में किए हुए पाप रूपी शल्यों की आलोचना करने से समाधि प्राप्त होती है। आलोचना लेना बहुत कठिन है। भूल करना यह मनुष्य का स्वभाव है किन्तु भूल करने के बाद उसे स्वीकार करना ही उत्तमोत्तम लक्षण है। मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि जो भूल की है उसको स्वीकार करते हुए भय खाता है। अधिकांशतः उसमें अहंकार भाव ही बाधक बनता है। चण्डकौशिक .... ___चण्डकौशिक पूर्वभव में मासक्षमण(एक महीने का उपवास) के पारणे के पश्चात् भी मासक्षमण करता है, परन्तु एक बार भिक्षा के लिए जाते समय एक मेंढकी उसके पैरों के नीचे दब जाती है। साथ में चलता हुआ छोटा साधु गुरु महाराज को बतलाता है- महाराज! यह मेंढकी आपके पैर के नीचे आकर दब गई है। किन्तु अपनी भूल स्वीकारने के
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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