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________________ अक्षुद्रता गुरुवाणी-१ दूसरी तरफ छोटी बहू की बातें सुनकर पूरी राजसभा आश्चर्य चकित हो गई। राजा ने उस छोटी बहू से कहा - बेटी! तूने तो मुझे बहुत बड़े पाप से बचा लिया। तू तो मेरी गुरु है। बाद में मन्त्री को अपने पद से हटा दिया। सूक्ष्म बुद्धि से धर्म .... ___मनुष्य में से गाम्भीर्यता का गुण विदा हो जाने से उसमें छिछोरापन आ गया है और उससे वह परेशान रहता है। एक मनुष्य ने अभिग्रह लिया बीमार की सेवा करने के बाद ही मैं भोजन करुंगा। एक समय ऐसा आया कि पूरे गांव में कोई बीमार ही नहीं रहा। क्षुद्र बुद्धि के कारण वह विचार करता है कि आज मेरा दिन व्यर्थ ही गया। क्योंकि, आज गांव में कोई बीमार नहीं है। ऐसे तुच्छ विचारों के स्थान पर उसे विचार करना चाहिए था कि आज मेरे लिए सोने का सूर्य उदित हुआ है, क्योंकि आज गांव में कोई बीमार नहीं है। बस, इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं कि धर्म का सूक्ष्म बुद्धि से परीक्षण करना चाहिए। आचारांग सूत्र में आता है कि यदि घड़ा तिरछा/टेढ़ा हो तो पानी ढुल जाता है किन्तु घड़ा हर दृष्टि से समान हो तो उसमें पानी स्थिर रूप से टिका रहता है। इसी प्रकार धर्म की आराधना करने वाला मनुष्य ऐसी क्षुद्र बुद्धि वाला, हृदय में मलिनता धारण करने वाला और विचारों से वक्र हो तो वह जो भी धर्म करेगा वह निश्चित रूप से ढुल जाएगा। गम्भीर हृदय और सूक्ष्म बुद्धि ही धर्म को स्थिर रखती है। मनुष्य हृदय को सच्चे भाव से नमाता है तो उसका परम कल्याण हो जाता है।
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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