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धर्म की योग्यता
गुरुवाणी-१ १६. सुदीर्घदर्शी - सर्वदा विचार कर कदम उठाने वाला हो। १७. वृद्धानुगत - वृद्धों का अनुसरण करने वाला हो, वृद्धों की आज्ञा
को स्वीकार करने वाला हो। १८. विनीत - विनय युक्त हो। तस्मात् सर्वेषां गुणानां भाजनं विनयः।'
गुणरूपी रत्नों को धारण करने योग्य पात्र विनयी कहलाता है। १९. कृतज्ञ - दूसरों के किए हुए उपकार को स्मरण करने वाला हो,
उपकारी पर अपकार करने वाला न हो। २०. परहितचिन्तक - स्वभाव से दूसरों का हित करने वाला हो। २१. लब्धलक्ष्य - लक्ष्य बांधकर चलने वाला हो। जो मनुष्य किसी
भी बात का लक्ष्य बांध लेता है वह पूर्ण कर ही लेता है।
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जिसमें महिंसाकीसाधना पराकाष्ठातक पहुँची होउस व्यक्ति के सामने जाते ही दूसरे मनुष्यों के समस्त वैर विकार नष्ट हो जाते हैं। वैर भावना भी दूर हो जाती है। अगर समागम मात्र से इन दूषणों से बच सकती है और उनव्रतों में तनिक सी भूल भीभवममण को बढ़ा देती है।