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प्रवासी
गुरुवाणी-१ धनिक ने सोचा था कि पाँच-पचास रुपये खर्च करने पर यदि मैं गुरु की नजरों में आ जाता हूँ तो मेरा काम बन जाएगा। गुरु नानक कहते हैं- भाई! एक काम है। मेरे पास एक सूई है, वह सूई मैं तुम्हे सम्भालकर रखने के लिए देता हूँ। मै जब परलोक में जाऊं और तुम भी परलोक में आओ तो यह सूई साथ में लेकर आना। धनी व्यक्ति सोच-विचार में पड़ जाता है
और कहता है, गुरुजी यह कार्य तो नहीं हो सकता । गुरु नानक कहते हैंहे भाई! जब तू एक सूई भी साथ में लेकर के नहीं जा सकता तो इस ऐश्वर्य के पीछे अपना समय क्यों नष्ट कर रहा है? यह सुनते ही उस धनी का घमण्ड और पैसे पर ममत्व समाप्त हो जाता है, तथा वह अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करने लगता है। परलोक....
मनुष्य मृत्यु प्राप्त होने पर तीन वस्तुएं साथ लेकर जाता हैपुण्य, पाप और संस्कार।संस्कार में विनय, विवेक, सदाचार, क्षमा, और परोपकार सबसे अधिक महत्व के हैं। यहाँ से हम जहाँ भी जाएगें वहाँ पूर्वजनित संस्कारों पर ही हमारे जीवन की रचना होगी। किसी के जन्म से ही यह संस्कार होते हैं कि वह दूसरों को लूट लेता है, जबकि किसी के संस्कार किसी को देने के होते हैं, कोई अभिमानी होता है, कोई नम्र स्वभाव का होता है। यह सब स्वभाव पूर्व के संस्कारों पर ही आधारित होते हैं। पुण्य से सुख मिलेगा, पाप से दुःख मिलेगा और श्रेष्ठ संस्कारों से जीवन उज्ज्वल बनेगा। अच्छे संस्कार कैसे प्राप्त हों, यह हमारे हाथ की बात है। सुख-प्राप्ति और दुःखों से निवृत्ति यह भी हमारे ही हाथ की बात है।
। दूसरे को सुखी देखकर जो प्रसन्न होता है वहाँ सम्पत्ति । । अखूट रहती है, किन्तु दूसरों को लूटने का व्यवहार अपने | जीवन में रखता है तो जो प्राप्त हुआ है वह भी चला जाता है।।