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गुरुवाणी-१
धर्म-भावशुद्धि हुआ और वह विचार करने लगा। अरे! इसमें तो बहुत कमाई है, इन लोगो के पास से मैं बहुत कुछ कमा सकता हूँ। इनकी बदौलत तो मेरा भंडार अखूट बन जाएगा। थोड़ी देर बैठने के बाद राजा ने फिर रस का गिलास माँगा। किसान सांठे को पीलकर रस निकालने गया। बहुत समय लग गया। जब पूरा सांठा पिल गया तब मुश्किल से एक गिलास रस निकला। राजा को दिया। राजा ने पूछा- इतना समय कैसे लगा? खबर नहीं कौन जाने पहले तो एक छोटे से टुकड़े मे से पूरा गिलास भर गया था किन्तु अभी तो सारे सांठे को पिलने के बाद मुश्किल से गिलास भर पाया है। भूमि के मालिक के हृदय में विचारों में कुछ परिवर्तन हुआ होगा इसलिए ऐसा बन गया है। किसान को खबर नहीं थी कि यह राजा है। राजा को झटका लगा कि मेरे अशुद्ध विचारों से धरती से रस चला गया। उसे अत्यन्त खेद हुआ। राजा के विचार पुनः बदल गये और उसने फिर एक गिलास रस माँगा। थोड़े समय में ही गिलास भर गया। विचारों में कितनी शक्ति होती है?
इसी प्रकार दूसरों को सुखी देखकर आनन्दित होओगे तो तुम्हारे यहाँ भी अखूट सम्पत्ति हो जाएगी, किन्तु दूसरे के सुख को हरण करने का व्यवहार जीवन में घुस जाएगा तब तो जो आया है वह भी चला जाएगा।
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भूल करना यह तो मनुष्य का स्वभाव है,
परन्तु भूल करने के बाद उसको स्वीकार करना यही उत्तम है।
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