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________________ धर्म-भावशुद्धि श्रावण वदि४ योग्यता के विकास पर सिद्धि .... हमें धर्म का फल क्यों नहीं मिलता है, जानते हो? क्योंकि हम गुणों तक पहुँचते ही नहीं हैं। केवल बाह्य धर्म में ही मग्न रहते हैं। पहले आत्मा को योग्य बनाइये और योग्य बनाने के पश्चात् अभिलाषित कार्यों का चिन्तन कीजिए। योग्य बनना नहीं है और कामनाएँ सिद्ध करनी है, कैसे सिद्ध होंगी? योग्यता होगी तभी मिला हुआ सुरक्षित रह सकेगा, अन्यथा घड़ी के छठे भाग में ही विलीन हो जाएगा। जिनमें पात्रता होती है उनको सब कुछ स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। एक कहावत है- तू किसी वस्तु के पीछे मत पड़, योग्यता होने पर स्वतः ही खिच करके तेरे पास चली आएगी। शुद्धि प्रतिबिम्ब दिखाती है .... एक राजा था। वह विभिन्न प्रदेशो में घूमता था। घूमते-फिरते उसको यह प्रतीत हुआ की मेरे राज्य में एक वस्तु की कमी है। मेरे राज्य में चित्रशाला नहीं है, अतः बढ़िया से बढ़िया कोई चित्रशाला बनानी चाहिए। राजा ने श्रेष्ठ चित्रकारों को बुलाया और श्रेष्ठ से श्रेष्ठ चित्रशाला का निर्माण करने के लिए कहा। चित्रकारों के निवास के लिए सुन्दर निवास स्थान की व्यवस्था की गई और सभी चित्रकारों के लिए सभी प्रकार की अलग-अलग व्यवस्था कर दी। निर्माण के लिए एक समय सीमा भी बाँध दी। कुछ समय पश्चात् राजा ने कहलवाया कि मैं कुछ ही दिनों में चित्रशाला के निर्माण कार्य को देखने के लिए आने वाला हूँ। आप अपने चित्रों को तैयार रखें। राजा देखने के लिए जाता है और उन चित्रों की कलात्मकता को देखकर राजा आश्चर्य चकित हो जाता है। इस प्रकार
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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