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शासन-महासद्भाग्य
गुरुवाणी-१ है- ओह! आपकी लिखित इतनी सारी पुस्तकों को बांचने में तो मेरी यह जिन्दगी भी बहुत छोटी पड़ेगी। मुझे इतना लम्बा इतिहास पढ़ने का समय नहीं है, अतः इसका संक्षिप्तिकरण करके लाइये। विद्वानों ने बहुत कठिन परिश्रम करके उस इतिहास को संक्षिप्त किया। सम्राट ने कहा- वह संक्षिप्त इतिहास लाइए। विद्वानों ने कहा- हमने उस बृहत्कायिक इतिहास का संक्षिप्तीकरण कर दिया है, किन्तु उन्हें लाने के लिए भी वाहन भेजने पड़ेंगे। सम्राट कहता है- मुझे इतनी अधिक पुस्तकें पढ़ने का अवकाश नहीं है, अतः इसे भी आप संक्षिप्त कीजिए। सम्राट की बात को सुनकर विद्वान् लोग उद्विग्न हो गये। कुछ समय पश्चात् राजा बीमार हो गया, बचने की कोई आशा नहीं रही। विद्वानों को यह समाचार मिलने पर उन्होंने विचार किया- अहो! हम पर यह कलंक लग जाएगा कि इन विद्वानों ने राजकोष खाली कर दिया किन्तु इतिहास नहीं लिखा। अतः समस्त विद्वान् मिलकर उस बादशाह के पास गये। बादशाह ने कहा- मेरा अंतिम समय निकट है, इसलिए जो कुछ कहना हो जल्दी कह डालो। विद्वानों ने कहाबादशाह ! सुनो, मनुष्य जन्म लेता है, बड़ा होता है, घर बसाता है, शादी-विवाह करता है, बुड्डा हो जाता है, घिसता जाता है, घायल हो जाता है, रोने लगता है, और मर जाता है। इस प्रकार केवल इन दो पंक्तियों में ही मानव जाति का पूरा इतिहास आ जाता है। अर्थ नहीं, शासन प्राप्ति महासद्भाग्य . . . .
विचार कीजिए - अत्यन्त दुर्लभ यह मानव जन्म क्या इसी प्रकार निरर्थक कर देना है? जो इन्द्र को भी अत्यन्त दुर्लभ है वह मानव जन्म हमें बहुत सहजता से प्राप्त हुआ है, इसलिए हम इसकी कीमत नहीं आंक सकते। असंख्यात देव एक साथ देवलोक से च्युत होते हैं, किन्तु उनमें से मनुष्य जन्म तो मर्यादा में ही प्राप्त करते हैं। विचार करो, देव जैसे भी तिर्यंच गति में चले जाते हैं।