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शासन- महासद्भाग्य
श्रावण वदि ३
जीव शिव है.
प्रभु के साथ सम्बन्ध जुड़ जाने पर आत्मा के भीतर समस्त गुण प्रकट होने ही चाहिए। शास्त्रकार कहते हैं- प्रत्येक जीवात्मा परमात्म स्वरूप है। प्रत्येक जीव परमात्मा होते हुए भी यह जीव पूर्णत: निम्नकोटि का बन गया है, क्योंकि आत्मा के भीतर रहे हुए परमात्मस्वरूप पर अज्ञानरूपी आवरण छा गया है। इस आवरण के दूर होने पर ही परमात्मा के दर्शन होते हैं । यह जीवन कितना दुर्लभ है .
सोने की खदान में केवल पत्थर ही होते हैं । सामान्यतः देखने पर यह भी खबर नहीं होती की यह सोना है या पत्थर? इस पत्थर के दोनों और लोहे की शिलाएं रख दी जाती हैं । इन लोह खण्ड की शिलाओं के ऊपर मशीन के द्वारा पत्थर पर इस प्रकार का प्रहार किया जाता है कि रेत के समान उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं, फिर उस रेती को पानी में डाला जाता है । पानी में जो सोने के कण होते हैं वे भारी होने के कारण नीचे रह जाते हैं और पानी के साथ मिट्टी बह जाती है। उन कणों को एकत्रित कर पाट बनाया जाता है, इस प्रकार यह सोना तैयार होता है । यह सोना भी पृथ्वीकाय का जीव है, हम भी पहले इस काय में थे। पृथ्वीकाय आदि कायों में घूमतेघूमते हमारा अनन्त काल व्यर्थ में गया। आज हमारा महापुण्य का उदय है जिसके कारण हम आज इस भूमिका तक पहुँचे हैं। आज मानव संख्या कितनी है ? और जीवाणुओं की संख्या कितनी है ? करोड़ो - अरबों की है। हम भी जीवाणुओं की योनि में भटके होगें ।