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गुरुवाणी-१
ज्ञान का अञ्जन दृष्टि से देखते हैं- यह कोई महान् आत्मा है अतः उसे धर्मदेशना देते हैं। उनका उपदेश सुनकर उसके हृदय में शांति ही शांति छा जाती है। वह साधु बनता है और प्रतिज्ञा करता है- जिस दिन मुझे मेरे पाप याद आएगें उस रोज मैं आहार-पानी का त्याग कर दूंगा। जिस दिन वह गोचरी के लिए गाँव में जाता है, उसे देखते ही लोग उसे गालियाँ देते हैं और कहते हैं 'यह पापी है, यह पापी जा रहा है' । दृढ़प्रहारी उस पाप को याद नहीं करता है किन्तु लोग पापी-पापी करके उस पाप को याद दिला देते हैं। फलतः वह छः महीने तक आहार-पानी का त्याग कर देता है और अन्त में उसे केवलज्ञान प्राप्त होता है।
यह उदाहरण/दृष्टांत दृष्टि के सामने रखें तो हमें ध्यान आएगा कि मानव जीवन कितना अमूल्य है? इस जीवन में हम क्या नहीं कर सकते। दृढ़प्रहारी जैसा पापी में पापी मनुष्य जब केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है तो उसके पाप के सामने हम वैसे पापी तो नहीं हैं? भगवान् को प्रार्थना करो- आपने ऐसे पापी को केवलज्ञान प्रदान कर दिया तो मैं तो इस प्रकार का कोई पाप नहीं करता, मुझे केवलज्ञान कब मिलेगा? सच्चे दिल की प्रार्थना होने पर वह सफल होती है। सच्चे दिल से पाप का पश्चात्ताप करने पर पापी में पापी मनुष्य भी पवित्र बन जाता है। भगवान् महावीर अर्थात् साक्षात् करुणा की मूर्ति । चण्डकौशिक जैसे तिर्यंच जीव का उद्धार करने के लिए स्वयं उसके सामने चले जाते हैं जबकि हम तो स्वयं भगवान् के सामने जाते हैं, तो वे हमें क्यों नहीं तारेंगे?
चेतना - उपयोग.... यह चेतना एक रंगहीन पारदर्शी वस्तु है,उसको जिस प्रकार के पदार्थों का सम्पर्क कराएंगे वैसा ही रंग प्रतीत होगा। सदगुणों से रंगीन करने पर ही सद्गुण आएंगे और दुर्गुणों से रंगने पर दुर्गुण आएगे।