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________________ गुरुवाणी-१ ज्ञान का अञ्जन उस बात को अनसुना कर देती है। अन्त में सेठ पुनः कहता है- खैर वाणी सुनने के लिए नहीं चलेंगे किन्तु वहाँ जाएं तो सही। वहाँ अनेक लोगों से मेल-मिलाप होगा। सेठ के हृदय में यही विचार था कि सेठानी के हृदय में किसी प्रकार परिवर्तन आ जाए। सेठ के बारम्बार कहने पर सेठानी ने थककर अन्त में कह ही दिया- चलो। दोनों वहाँ जाते हैं। सत्पुरुष की वाणी सुनते हैं। उनकी वाणी हृदय में उतर जाती है। अहंकार ही अंधकार है, यह समस्त वैभव किसके लिए है। केवल अहंकार का पोषण करने के लिए ही तो है। इस अहम्' के उपर ही सारा जगत चलता है। शास्त्रों में अहंकार को पहाड़ कहा है। इस प्रकार का अहंकार रूपी पर्वत जब तक खड़ा रहेगा तब तक भगवान् की वाणी रूपी किरणें जीवन में प्रवेश नहीं कर सकती। इसलिए अहंकार रूपी अंधकार का नाश करो। सेठानी के हृदय का अहंकार दूर होने पर उसको स्वयं ही स्वयं के दुर्गुण आँखों के सामने दिखाई देने लगे। जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया और सेठानी नियमित रूप से उस सन्त की वाणी सुनने के लिए जाने लगी। एक दिन सेठ ने कहा- अरे ओ सेठानी ! तुम्हारे भीतर तो बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया है। अहंकार रहित हो जाने के कारण सेठानी ने उत्तर दिया- मैं तो सुधरी नहीं किन्तु बिगड़ गई हूँ। अब मुझे मेरे सब दोष दिखाई देने लगे हैं । इस प्रकार सत्पुरुष की वाणी की संगति से सेठानी का जीवन निर्मल बन गया। हमारा जीवन ताश के पत्तों के महल के समान है। मृत्यु रूपी पवन के एक झकोरे मात्र से जीवन रूपी पत्तों का महल नष्ट-भ्रष्ट हो जाने में देर नहीं लगेगी। समझकर संस्कारित हो जाता है वह मानव .... मानव जन्म की विशेषता और महत्त्व यह है कि स्वयं समझ सकता है और परिवर्तन कर सकता है। सच्ची समझ आने के बाद पापी में पापी दृढ़प्रहारी जैसा मनुष्य भी केवलज्ञान की प्राप्ति तक पहुँच सकता है। दृढ़प्रहारी का नाम इसलिए लेना पड़ा क्योंकि वह बहुत ही हिंसा और
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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