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धर्म - जीवनशुद्धि
गुरुवाणी-१ थे। ऐसे महान् सामर्थ्य वाले व्यक्ति जब घर से बाहर निकलते उस समय कितने ही लोग उनकी कुशल-क्षेम पूछते थे। उस समय वस्तुपाल दर्पण में अपने प्रतिबिंब को देखकर उससे पूछते थे- 'वस्तुपाल! तुम्हारी कुशलक्षेम सब लोग पूछते है पर कुशलक्षेम है कहाँ? मृत्यु का कोई भरोसा ही नहीं है। तेरी कुशलता कहाँ है? तु तो मृत्यु से जकड़ा हुआ है।' उनके जीवन में ऐसी जागृति थी। उनके जैसी जागृति हमारे जीवन में भी आ जाए तो हमारा जन्म भी सफल हो जाए। हमारे पास किसी प्रकार की गारन्टी नहीं है कि हम मृत्यु के बाद सुखी होंगे ही। हमारी चौबीस घण्टों की प्रवृति क्या है? खाना-पीना, पहनना, घूमनाफिरना, बस यही विचार दिमाग में घूमते रहते हैं, क्या अन्य विचार भी करते हैं? यहाँ मस्ती से खाते हैं किन्तु कुत्ते की योनि में जाने पर एक रोटी के टुकड़े के लिए भी पत्थर खाने पड़ेंगे। कवि कालिदास कहते हैं- तुम थोड़े से टुकड़ों के लिए अपना बहुत कुछ खो रहे हो। मातृभक्त कपिल....
कपिल नाम का एक ब्राह्मण था। कपिल के पिता राज्य के मंत्री थे। अकस्मात् ही उनकी मृत्यु हो गई। कपिल छोटा था इसलिए राजा ने मन्त्री पद दूसरे को दे दिया और राज्य की ओर से जो वैभव एवं साधन सामग्री मिलती थी वह भी कपिल से छीनकर नये मन्त्री को दे दी।
एक दिन वह नया मन्त्री बड़े ठाठ-बाठ के साथ कपिल के घर के पास से निकला। उसको देखकर कपिल की माता को पुराना समय और समृद्धि याद आने से वह जोर-जोर से बुक्का फाड़ कर रोने लगी। कपिल ने पूछा- 'माँ, तुम क्यों रोती हो? उत्तर में उसकी माता कहती है- 'पुत्र! यह सारा वैभव एक दिन अपने घर पर था। जब तू