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स्वयं के अमूल्य समय का भोग देने वाले श्रीअजयभाई का भी बहुतबहुत आभार मानती हूँ।
अन्त में यह पुस्तक अनेक धर्मिष्ठों के लिए सत्य मार्ग प्रेरक बने यही मेरी मनोकामना है। वीतराग की आज्ञा के विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो या प्रूफ वांचन / सुधार में किसी भी प्रकार की त्रुटी रह गयी हो तो कृपया वाचकगण उसे सुधारकर पढ़ें, साथ ही हमें भी सूचित करें ताकि अगले संस्करण में सुधार ta | भूलचूक के लिए कृपया वाचकगण क्षमा करें।
यह पुस्तक पूजनीया वात्सल्यमयी गुरुमाता के चरणों में समर्पित कर मैं यत्किंचित् ऋण से मुक्त होने की कामना करती हूँ ।
आषाढ़ वदि ६, संवत् २०५२ गांधीनगर
मनोहर-सूर्य-शिशु