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________________ मूल तत्त्व ७९ ― गुरुवाणी - १ था कि वह जमीन से ऊपर है। लोगों में यह प्रसिद्धि थी की सत्य के प्रभाव से ही वसु राजा का सिंहासन पृथ्वी से ऊपर अधर रहता है। दूसरे दिन नारद और पर्वत राजसभा में आते हैं और दोनों अपने-अपने पक्ष प्रस्तुत करते हैं। सभ्य रूप में रहे हुए सदस्य राजा को कहते हैं - हे राजन्, आप सत्यवादी हैं इसीलिए जो सत्य हो कहिए। अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोलने वाला वसु राजा झूठी साक्षी देता है - गुरुजी ने अज का अर्थ बकरा किया था..... बस इतने कथन मात्र से निकट में रहे हुए कुलदेवता ने कुपित होकर वसु राजा को सिहांसन से नीचे गिरा दिया । रक्त वमन करता हुआ वसु राजा तत्काल ही मरकर नरक में गया। केवल यही नहीं, उसकी राजगद्दी पर बैठने वाले आठ-आठ वंशज थे। वे प्रत्येक राजा इसी प्रकार मौत को पाकर नरकगामी हुए । जगत् में तीन तत्त्व महान् हैं। देवतत्त्व गुरुतत्त्व और धर्मतत्त्व। ये तीनों ही तत्त्व यदि जीवन के साथ जुड़ जाएँ तो जीवन धन्य / सफल बन जाए। देवतत्त्व और धर्मतत्त्व को समझाने वाले गुरु होते हैं। 'देवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ कष्टे न कश्चन' देव रुष्ट हो गये तो गुरु बचा लेंगे परन्तु यदि गुरु रुष्ट हो गये तो कोई भी बचा नहीं सकता। गुरुतत्त्व के द्वारा ही समस्त गुणों की प्राप्ति हो सकती है। तीर्थंकर परमात्मा का यह सम्पूर्ण शासन गुरुतत्त्व पर ही चल रहा है।
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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