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सूत्र संवेदना-५
प्राणियों के साथ-साथ राक्षस, चोर, डाकू वगैरह के अनेक भय उत्पन्न हुए, परन्तु शांतिनाथ प्रभु के प्रभाव से उन सारी मुसीबतों से वह सही सलामत बाहर निकल गई।
१५ सर्वाशिव प्रशमनाय : सभी उपद्रवों शमन करनेवाले (शांतिनाथ भगवान को नमस्कार हो ।)
मारी, मरकी, स्वपक्ष या परपक्ष से किसी भी प्रकार के अशिव अर्थात् उपद्रव हुए हों, तो शांतिनाथ भगवान के मंत्र-जाप से वे शांत हो जाते हैं। __ तक्षशिला नगरी में उत्पन्न हुआ मारी, मरकी का उपद्रव 'शांतिस्तव' के पाठ से शांत हो गया था। इसलिए प्रभु को सभी अशिव का नाश करनेवाले कहना सार्थक है ।।
१६ दुष्टग्रह-भूत-पिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय - दुष्टग्रह, भूत, पिशाच और राक्षसी को तहस-नहस करनेवाले (शांतिनाथ भगवान को नमस्कार हो।)
एकाग्रतापूर्वक किया गया शांतिनाथ भगवान का ध्यान या जाप सूर्य, मंगल या शनि आदि क्रूर ग्रहों की पीड़ा, भूत वगैरह व्यंतर जाति के देवों द्वारा की गई पीड़ा और मैली विद्या को जाननेवाली स्त्री द्वारा की गई पीड़ा को तहस-नहस कर देता है। पंचरत्न माला की ये गाथाएँ बोलते हुए साधक सोचता है कि,
'शब्दातीत अवस्था में स्थित प्रभु को परखना आसान नहीं है । योगसाधना से प्राप्त हुई विशिष्ट शक्तिवाले योगी ही प्रभु को सच्चे अर्थ में समझ सकते हैं। ऐसी यौगिक शक्ति तो मुझ में नहीं है फिर भी मेरा परम सौभाग्य है कि परम पूज्य मानदेवसूरीश्वरजी महाराज ने