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________________ लघु शांति स्तव सूत्र गाथा: सर्व-दुरितौघ-नाशनकराय सर्वाशिव-प्रशमनाय। दुष्टग्रह-भूत-पिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय।।५।। अन्वयः १४सर्व-दुरितौघ-नाशनकराय "सर्वाशिव-प्रशमनाय । रदुष्टग्रह-भूत-पिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय।।५।। गाथार्थ : समग्र दुःख के समूह का नाश करनेवाले", सभी उपद्रवों को शांत करनेवाले ५, दुष्टग्रह, भूत, पिशाच और शाकिनियों को दूर करनेवाले (शांतिनाथ भगवान को मेरा नमस्कार हो।) विशेषार्थः १४ सर्व-दुरितौघ-नाशनकराय - सभी दुःख के समूह का नाश करनेवाले (शांतिनाथ भगवान को नमस्कार हो।) सभी प्रकार के दुरित अर्थात् दुःख का ओघ अर्थात् समूह का नाशनकर अर्थात् नाश करनेवाले, शांतिनाथ भगवान के नाम स्मरण से, जाप से या भक्ति से दुःख के समूह का नाश होता है, इसलिए शांतिनाथ भगवान सर्व दुरितौघनाशनकर कहलाते हैं। शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा या स्वयं विचरते शांतिनाथ भगवान तो दुःखों को दूर करते ही हैं, पर उनके नाम मात्र में भी शांति प्रदान करने का सामर्थ्य है । उनका नाम या मिट्टी से बनी उनकी मूर्ति में की गई उनकी स्थापना से भी भयादि दूर होते हैं। ऐसे अनेक दृष्टांत शास्त्रों में तो मिलते ही हैं पर आज भी अनुभव में आते हैं । जैसे कि महासती दमयंती जब जंगल में अकेली पड़ गई तब वहाँ उन्हें जंगली
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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