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लघु शांति स्तव सूत्र शांतिनाथ भगवान चक्रवर्ती का पुण्य लेकर इस धरती पर अवतरित हुए थे। इस पुण्य के प्रताप से ही वे छ: खंड के सभी राज्यों के ऊपर जीत प्राप्त कर षट्खंडस्वामी बने थे । छ: खंड की बात तो दूर रही, दुनिया में देव-देवेन्द्रों की भी ताकत नहीं थी कि वे प्रभु को जीत सकें, उनको वश में कर सकें या उनका पराभव कर सकें । इस प्रकार प्रभु बाह्य दुनिया में सभी के लिए अजेय थे।
इसके अलावा पाँच इन्द्रिय और छठे मन रूप छ: अंतरंग खंड हैं। सामान्य लोगों के लिए तो बहुत साधना करने के बाद भी इन छ: खंडो पर जीत हाँसिल करनी कठिन होती है। अधिकतर जीव तो मन और इन्द्रियों के वश में ही होते हैं। उनसे हारकर वे कई अनुचित प्रवृत्तियाँ कर बैठते हैं। जब कि इन छ खंडो के ऊपर प्रभु का विशिष्ट कोटि का प्रभाव और प्रताप छाया हुआ रहता है। प्रभु की इच्छा के विरुद्ध इन छ खंडो में थोड़ी भी हलचल नहीं होती।
इन छ: खंड़ो के प्रभु विजेता थे, इसीलिए सर्वत्र प्रभु का व्यवहार औचित्यपूर्ण था। प्रभु के जीवन में कहीं भी औचित्य भंग देखने को नहीं मिलता। इस प्रकार प्रभु कभी भी बाह्य शत्रु से तो नहीं जीते गए, बल्कि इन छ: अंतरंग शत्रुओं से भी कभी पराजित नहीं हुए, और सदैव उनके ऊपर जीत प्राप्त की, इसीलिए भगवान को 'न जिताय' कहा जाता है।
१३ भुवन-जन-पालनोद्यततमाय13 विश्व के जीवों का पालन करने में अत्यन्त उद्यमशील। 13. भुवन के जन वह भुवन-जन, उसका पालन वह भुवन-जन पालन, उसके विषय में उद्यततम
वह भुवनजनपालनोद्यततम, भुवन = विश्व। 'भुवनस्य विश्वस्य', जन-लोक । पालनं रक्षण। 'पालनं रक्षणम्' उद्यततम अति उद्यत, तत्पर। 'तम' प्रत्यय यहाँ अतिशय के अर्थ में आया है अर्थात् अतिशय प्रयत्न करनेवाला, जिसने अतिशय प्रयत्न किया हुआ है ऐसा 'उद्यतः कृतयत्नः', जो विश्व के लोक का रक्षण करने में प्रयत्नशील या तत्पर हैं उन्हें।