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________________ सूत्र संवेदना - ५ होते हैं, ५० श्रेष्ठ शंख जैसे श्वेत (सफेद) वर्णवाले होते हैं, ३० तीर्थंकर श्रेष्ठ विद्रुम अर्थात् परवाला ( Corals) जैसे रक्त वर्णवाले होते हैं, ३८ जिनेश्वर मरकत अर्थात् श्रेष्ठ नीलम ( emerald) जैसे हरित - नीली रंग की कांतिवाले होते हैं और १६ जिनेश्वर घन अर्थात् मेघ जैसी श्याम-रंग की छटावाले होते हैं । इस प्रकार तीर्थंकर पंचवर्णवाले होते हैं। ५४ श्री परमात्मा के बाह्य सौंदर्य का वर्णन करके उनके अद्भुत अतिशयों की स्मृति करवाकर 'विगतमोहम्' शब्द द्वारा स्तुतिकार परमात्मा के आंतरिक सौंदर्य की झलक दिखलाते है। जिनके मोह अर्थात् राग-द्वेष और अज्ञान नाश हो चुके हैं, ऐसे विगतमोह परमात्मा वीतराग - सर्वज्ञ हैं । इस विशेषण द्वारा परमात्मा का 'अपायापगम' अतिशय दर्शित किया गया है । इसके अलावा 'सर्वामरपूजितं ' इस तीसरे विशेषण द्वारा बताया गया है कि, परमात्मा सभी देवों द्वारा पूजित हैं । जघन्य से परमात्मा की सेवा में १ करोड़ देवता होते हैं । जिस प्रकार श्री अरिहंत परमात्मा अष्ट प्रातिहार्य, देवकृत अतिशय, पाँचों कल्याणकों के उत्सव आदि से देवों द्वारा पूजित हैं उस प्रकार दुनिया में और कोई देवता पूजित नहीं हैं । यह परमात्मा का 'पूजा' अतिशय है । उपरोक्त तीन विशेषणों से सुशोभित १७० तीर्थंकरों की मैं वंदना करता हूँ । यह सुंदर स्तुति बोलते हुए सुयोग्य स्थानों में रहनेवाले, बाहर से सुंदर वर्णवाले, गुणसंपत्ति के कारण ऋद्धिसंपन्न देवों से पूजित, विहार करते हुए १७० तीर्थंकरों को स्मृति में लाकर दो हाथ जोड़कर नमस्कार करना है और उसके द्वारा मोह को मारने की और गुणसमृद्धि प्राप्त करने की प्रार्थना करनी है ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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