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________________ विशाल - लोचन दलं है। कहने का भाव यह है कि जिनागम की युक्ति युक्त बातों के सामने एक भी कुतर्क टिक नहीं सकता । २९ ะ गगन का चंद्र रात्रि में उदित होता है और दिन में छिप जाता है जब कि श्रुतरूपी उडुपति का तो हमेशा उदय ही रहता है। कभी भी उसका अस्त नहीं होता। 'हां' पाँचवें आरे के अंत में भरत क्षेत्र में जिनागम को धारण करनेवाला कोई नहीं होगा, परन्तु तब भी महाविदेह आदि में तो यह चंद्र चमकता ही रहेगा । लोग जिसे देखकर क्षणभर आनंद प्राप्त करते हैं, उस नभ मंडल का चंद्र तो ज्योतिष्क देव के रत्न के विमान स्वरूप होने से पुद्गल रूप है जब कि आगमरूपी इन्दु तो जिनेश्वर भगवान की वाणी रूपी सुधा से निर्मित है जो अनंतज्ञानमय चेतना का संचार करता है । आकाश के चंद्र के सामने सामान्य जन भौतिक आशंसाओं से झुकते हैं जब कि उन्हीं भौतिक आशंसाओं से मुक्त होने के लिए प्रभु के आगम रूपी चंद्र के आगे देव, देवेन्द्र, चक्रवर्ती और धुरंधर पंडित भी भाव से बार बार झुकते हैं; उसकी अध्ययन-अध्यापन, चिंतन-मनन आदि रूप में सतत उपासना करते रहते हैं । ऐसे विशिष्ट आगम ग्रंथ अद्भुत एवं अनुपम होने से अपूर्व हैं, इसलिए प्रातः काल के पवित्र समय में उनकी स्तुति करनी चाहिए । I “ज्ञान का प्रकाश मेरे सामने है, उसे प्राप्त कर मुझे अपने अज्ञान के अंधकार को दूर करना है । हे प्रभु ! इस आगम रूपी चंद्र के आलंबन से मेरा अज्ञान दूर हो और ज्ञान के प्रकाश से मेरा समग्र जीवन प्रकाशित हो ऐसा आशीष दीजिए ।” यह गाथा बोलते हुए साधक प्रभु के आगमरूप चंद्र को ध्यान में लाकर भाव से प्रणाम करके सोचे कि -
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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