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विशाल - लोचन दलं
सूत्र परिचय :
प्रभात के प्रतिक्रमण में छः आवश्यक की पूर्णाहुति के बाद मंगलस्तुति के रूप में यह सूत्र बोला जाता है । इसलिए इसका दूसरा नाम प्राभातिक स्तुति या 'प्राभातिक वीर स्तुति' है । परंपरागत रचना शैली का अनुसरण करनेवाली इस स्तुति में पहली गाथा अधिकृत जिन की, दूसरी गाथा सभी जिनेश्वरों की और तीसरी गाथा आगम की स्तुतिरूप है । पूर्वाचार्यों की परंपरा ही इसका आधार स्थान है ।
पुरुष रात्रिक प्रतिक्रमण में जब मंगल रूप में यह सूत्र बोलते हैं, तब स्त्रियाँ 'संसारदावानल' की स्तुति बोलती हैं । विविध अलंकारों से सुशोभित इन श्लोकों द्वारा परमात्मा का अद्भुत स्वरूप आँखों के सामने उपस्थित होता है और वैसा होने से साधक लक्ष्यशुद्धिपूर्वक दिन की शुरुआत कर सकते हैं।
मूलसूत्र :
विशाल - लोचन - दलं, प्रोद्यद्-दन्तांशु - केसरम् । प्रातर्वीरजिनेन्द्रस्य, मुख- पद्मं पुनातु वः । । १ । ।