________________
३२०
सूत्र संवेदना-५ आप मोक्ष जायेंगे। यह सुनकर भक्ति भाव से अषाढ़ी श्रावक ने श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति बनवाकर उसकी नित्य पूजा शुरू की। कालांतर में यह प्रतिमा तीनों लोक में पूजित हुई। जरासंघ के साथ युद्ध के समय श्रीकृष्ण महाराज की सेना को जरासंघ ने जरा नाम की विद्या के प्रयोग से मृतप्रायः कर दिया था, तब श्री नेमनाथ प्रभु के कहने से कृष्ण वासुदेव ने अट्ठम करके पद्मावती देवी की आराधना की और उनके प्रभाव से वे इस प्रतिमा को मनुष्य लोक में लाए । इस प्रतिमा का जलाभिषेक करके, उस जल का छिडकाव कर, मृतप्रायः सैन्य को सजीव किया। उसके बाद यह अति प्रभावक और अति प्राचीन पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा शंखेश्वर तीर्थ में प्रतिष्ठित की गई । यह प्रतिमा लगभग १८ कोडाकोडी सागरोपम के पहले निर्मित हुई थी और यह भरत क्षेत्र में लगभग ८६,००० वर्षों से भक्तों के लिए एक आकर्षण का स्थान बनी हुइ है। इस तीर्थ का प्रभाव अचिन्त्य है। कहा जाता है कि शंखेश्वर पार्श्वनाथ के स्मरण से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं। सुप्रभात में उनके नाम का स्मरण करके उनको वंदना करते हुए प्रत्येक साधक को आत्मशुद्धि में बाधक बननेवाले राग-द्वेषवाले विघ्नों के समूह को शांत करने की प्रार्थना करनी चाहिए। केसरियो सार: ___ यह तीर्थ राजस्थान में मेवाड़ प्रदेश के उदयपुर शहर के पास है।
आज से लगभग हज़ार वर्ष पूर्व इस स्थान से ऋषभदेव प्रभु की भव्य प्रतिमा निकली थी, जो वहीं स्थापित की गई। इस मूर्ति के ऊपर बहुत केसर चढ़ने के कारण उसका नाम केसरियाजी प्रसिद्ध हुआ। कहा जाता है कि यह प्रतिमा पहले लंकापति श्री रावण के यहाँ पूजित थी
और फिर अयोध्या में श्री रामचंद्रजी के वहाँ यह प्रतिमा पूजित हुई। आज भी यह प्रतिमा अति चमत्कारिक और सबकी इच्छा पूर्ण करनेवाली मानी जाती है।