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________________ सकलतीर्थ वंदना ३१९ राग के बंधनों को तोड़कर स्वभाव दशा को प्राप्त करके परमानंद पद को प्राप्त कर सकूँ ऐसी प्रार्थना करता हूँ।' आबू ऊपर जिनवर जुहार : अर्बुदगिरि तीर्थ राजस्थान की सीमापर स्थित है। वह अरवल्ली पर्वत श्रृंखला का एक भाग है। इस गिरि की श्रेणी के ऊपर देलवाड़ा मंदिर नाम से पहचाने जानेवाले मंदिर के संकुल में विमल मंत्री, वस्तुपाल-तेजपाल, भीमशाह आदि द्वारा निर्मित अति भव्य मंदिर हैं, जिनके निर्माण की बातें उन-उन श्रावकों की अद्वितीय भक्ति की यशोगाथा गाते हैं। उस काल में आबू के पास ऐतिहासिक चंद्रावती नगरी के दंडनायक महामंत्री विमलशाह ने इस जिनालय के लिए चौरस सोनामोहरें बिछाकर जगह खरीदी थी। फिर वस्तुपाल-तेजपाल ने यहाँ बारीक नक्काशी-दरकारी करनेवाले कारीगरों से जितने पत्थर बाहर निकाले, उतने भार का सोना देकर इस मंदिर का निर्माण करवाया। आबू के आगे अचलगढ़ में, राणकपुर तीर्थ के निर्माता धरणाशाह के भाई रत्नाशाह ने, जिसमें अधिकतर भाग सोने का है ऐसे १४४४ मण के पंचधातु के बिंबों से सुशोभित जिनमंदिर का निर्माण किया। श्रीमान शांतिदास सेठ द्वारा निर्मित शांतिनाथ प्रासाद भी यहाँ ही है। यह पद बोलते हुए दुनिया में बेजोड़ कारीगरीवाले इस तीर्थ को याद कर वंदन करते हुए साधक को इस नयनरम्य तीर्थ के सहारे अपनी आत्मा को रम्य बनाने की प्रार्थना करनी है । शंरवेश्वर : इस अवसर्पिणी के पूर्व की उत्सर्पिणी में श्री दामोदर नाम के तीर्थंकर हुए । एक बार समवसरण में अषाढ़ी नाम के श्रावक ने प्रभु को अपने मोक्षगमन का समय पूछा, तब श्री दामोदर तीर्थंकर ने बताया कि आनेवाले चौबीसी के श्री पार्श्वनाथ भगवान के काल में
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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