________________
सकलतीर्थ वंदना
५. दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थों को वंदना :
३१५
( गाथा - ११-१२-१३ )
समेतशिखर वंदूं जिन वीश, अष्टापद वंदु चोवीश, विमलाचल ने गढगिरनार, आबु ऊपर जिनवर जुहार ।। ११ । । शंखेश्वर केसरिओ सार, तारंगे श्री अजित जुहार,
अंतरिक्ष (ख) वरकाणो पास,
जीराउ (ऊ) लो ने थंभण पास ।। १२ ।। गाम नगर पुर पाटण जेह, जिनवर चैत्य नमुं गुणगेह, शब्दार्थ :
समेतशिखर पर्वत के ऊपर बीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं, अष्टापद के ऊपर चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं तथा शत्रुंजय, गिरनार, आबू के ऊपर भी भव्य जिनमूर्तियाँ हैं। उन सभी प्रतिमाओं को मैं वंदना करता हूँ । शंखेश्वर, केसरियाजी वगैरह में जो अलग-अलग तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं, तारंगा के ऊपर श्री अजितनाथजी की जो प्रतिमा है, उन सभी को मैं वंदन करता हूँ। उसी प्रकार अंतरीक्ष पार्श्वनाथ, वरकाणा पार्श्वनाथ, जीरावला पार्श्वनाथ और स्थंभन पार्श्वनाथ के प्रसिद्ध तीर्थो को भी मैं वंदन करता हूँ । उसके बाद अलग-अलग गाँवों में, नगरों में, पुरों में और पत्तन में गुणों के स्थानरूप जो-जो जिनेश्वर प्रभु के चैत्य हैं, उन सभी को मैं वंदन करता हूँ । विशेषार्थ :
परमात्मा की कल्याणक भूमियाँ, प्रभु के पदार्पण से पवित्र हुई भूमियाँ अथवा जहाँ प्राचीन प्रभावशाली प्रतिमाओं की स्थापना हुई हो वैसी भूमियों को तीर्थभूमि कहते हैं। इस भूमि पर आकर अनेक पुण्यात्माएँ शुभ क्रियाएँ करती हैं। उनके शुभ भाव और शुभक्रियाओं