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सूत्र संवेदना - ५
इन सभी चैत्यों का माप नीचे दिये गए कोष्टक के अनुसार है और ऊर्ध्व तथा अधोलोक में जिनप्रतिमाजी सात हाथ प्रमाण है जब कि तिर्च्छालोक में जिनप्रतिमाजी ५०० धनुष्य के प्रमाणवाली है ।
शाश्वत चैत्यों का प्रमाण :
चैत्य का स्थान
९. वैमानिक देवलोक के, नंदीश्वरद्वीर के, १०० यो. ५० यो. ७२यो रुचकद्वीप के और कुंडलद्वीप के
३१४
२. देवकुरु, उत्तरकुरु, मेरुपर्वत के वन,
वक्षस्कार, गजदंत, ईषुकार, वर्षधर और मानुषोत्तर पर्वतों के,
३. भवनपति के असुरकुमार निकाय के
४. भवनपति के नागकुमार आदि
९ निकाय के व्यंतरनिकाय के
,
चैत्यों की
लंबाई
पर्वतों के, दीर्घवैताढ्य, वृत्तवैताढ्य, सर्व द्रहों में, दिग्गज कूटों में, जंबू
आदि वृक्षों में और सभी कुंडों में
चौड़ाई ऊँचाई
५० यो. २५ यो. ३६ यो
२५ यो. १२।। यो.१८ यो.
१२ । । यो. ६ । यो ९ यो.
५. मेरुपर्वत की चूलिका के, यमक-शमक १ गाउ ० । । गाउ १४४०
तथा चित्र-विचित्र पर्वतों के कंचनगिरि
धनुष
शाश्वत चैत्यों को वंदन करने के बाद अब इस भरत क्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थों की वंदना करते हुए बताते हैं ।