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सूत्र संवेदना-५
जिनबिंब हैं, उनको भी मैं वंदन करता हूँ। गुणों की श्रेणी से युक्त चार शाश्वत जिनबिंबों के शुभ नाम, १-श्री ऋषभ, २-श्री चन्द्रानन, ३-श्री वारिषेण और ४-श्री वर्धमान हैं। विशेषार्थ :
रत्नप्रभा पृथ्वी १,८०,००० योजन की है। उसमें ऊपर-नीचे १०००१००० योजन छोड़कर बीच के १,७८,००० योजन में १३ प्रतर है, १३ प्रतर के १२ आंतरा में से ऊपर नीचे के छोड़ के १० आंतरा में १० भवनपति के भवन हैं। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर जो १००० योजन छोड़े थे, उसमें भी ऊपर-नीचे १००-१०० योजन छोड़कर बीच के ८०० योजन में व्यंतर निकाय के असंख्य भवन हैं। अब जो ऊपर के १०० योजन छोड़े थे, उनमें ऊपर-नीचे के १०-१० योजन छोड़कर बीच के ८० योजन में वाणव्यंतरनिकाय के असंख्य भवन हैं। इन व्यंतर
और वाणव्यंतर निकाय के हर एक भवन में भी एक-एक शाश्वत चैत्य है, जो ५० योजन लंबा, २५ योजन चौड़ा और ३६ योजन ऊँचा होता है। ऐसे व्यंतर निकाय में असंख्यात शाश्वत चैत्य हैं।
इसके अलावा सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा ये पाँच ज्योतिष देव हैं। जो चर और स्थिर दो प्रकार के होते हैं, उसमें २१), द्वीप में संख्यात° सूर्य, चन्द्र के विमान होते हैं, जो चर अर्थात् गतिशील होते हैं 8. १. चन्द्र के परिवार में १ सूर्य, २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह और ६६, ९७५ कोटाकोटी तारे होते हैं। जंबूद्वीप में
२ सूर्य २ चंद्र हैं। लवण समुद्र में
४ सूर्य ४ चंद्र हैं। धातकी खंड में
१२ सूर्य १२ चंद्र हैं। कालोदधिसमुद्र में
४२ सूर्य ४२ चंद्र हैं। अभ्यंतर पुष्करार्द्ध में
७२ सूर्य ७२ चंद्र हैं। मनुष्यलोक में कुल १३२ सूर्य १३२ चंद्र हैं। उसी प्रकार नक्षत्र, ग्रह और तारादि की संख्या भी जान लें।