SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकलतीर्थ वंदना ५-६ धातकी खंड तथा पुष्करवर द्वीप के चैत्य : १२७२ चैत्य १,५२,६४० प्रतिमाएँ = धातकी खंड और पुष्करवरद्वीप चूड़ी के आकार के हैं। उन दोनों के उत्तर और दक्षिण दिशा में एक-एक इषुकार पर्वत है । ये पर्वत द्वीप के दो विभाग करते हैं। उन दोनों विभाग में १ भरत, १ ऐरावत और १ महाविदेह क्षेत्र आदि हैं। इस प्रकार इन दोनों क्षेत्रों में कुल २ भरत, २ ऐरावत और २ महाविदेहक्षेत्र आदि होने से उनमें जंबूद्वीप से दुगुने चैत्य हैं। तदुपरांत दो इषुकार पर्वत के ऊपर और दो चैत्य हैं। अतः (६३५ x २ १२७० + इषुकार के २ १२७२) धातकी खंड और पुष्करवर द्वीप दोनों में १२७२ चैत्य और १,५२,६४० (१२७२ x १२०) प्रतिमाएँ हैं । = ७. मनुष्यलोक के बाहर तिर्च्छालोक के चैत्य : ८० चैत्य ९८४० प्रतिमाएँ ३०५ (२०) जंबूद्वीप से तीसरा चूड़ी के आकार का १६ लाख योजन चौड़ा पुष्करावर्त द्वीप है । उस द्वीप के ८-८ लाख योजन के दो विभाग करता हुआ मानुषोत्तर पर्वत है, इस पर्वत के बाद मनुष्यों का निवास नहीं है। इस मानुषोत्तर पर्वत की चारों दिशाओं में १ -१ चैत्य है । (२१) नंदीश्वर द्वीप के चैत्यः ६८ चैत्य ८३६८ प्रतिमाएँ जंबूद्वीप आदि ७ द्वीप तथा ७ समुद्र के बाद ८वां नंदीश्वरद्वीप है । उसके उत्तर दिशा के मध्य में अंजनगिरि नाम का पर्वत है। अंजनगिरि की चारों दिशाओं में दधिमुखपर्वत है । बीच में विदिशा के किनारे में २- २ रतिकर पर्वत हैं। ऐसे कुल १३ (१+४+८) पर्वत हुए। उन हर एक में शाश्वत जिन चैत्य हैं और हर एक चैत्यों में (१०८ + (४ द्वार की) १६ = ) १२४ शाश्वत प्रतिमाजी हैं।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy