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________________ २८२ सूत्र संवेदना-५ चैत्य के मध्यभाग में एक बड़ी मणिपीठिका होती है। उसके ऊपर एक देवछंदक अर्थात् स्तूप जैसा आकारवाला गर्भगृह होता है। वह लगभग मणिपीठिका जितना ही होता है, परन्तु उसकी ऊँचाई कुछ अधिक होती है। मणिपीठिका के ऊपर रहनेवाले देवछंदक की चारों दिशा में ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण और वर्धमान नामवाली २७-२७ प्रतिमाएँ होती हैं। ऐसे कुल मिलाकर उन देवछंदकों में १०८ प्रतिमाएँ होती हैं। इस प्रकार एक चैत्य में कुल १२० प्रतिमाएँ (१२ द्वारो की और १०८ देवछंदकों की) होती हैं। .. इसके उपरांत देवलोक के हर एक विमान में पाँच सभाएँ होती हैं। १. उपपातसभा, २. अभिषेकसभा, ३. अलंकारसभा, ४. व्यवसायसभा, ५. सुधर्मा (सौधर्मी) सभा। प्रत्येक सभा में तीन-तीन द्वार होते हैं। इसलिए ५ सभा में कुल मिलाकर १५ द्वार होते हैं। उन हर एक द्वार के ऊपर चौमुखजी भगवान बिराजमान होते हैं अर्थात् पाँच सभा में कुल (१५ x ४) ६० बिंब होते हैं। इस प्रकार बारह देवलोक के चैत्यों में कुल (चैत्य के १२० + सभा के ६०) १८० जिनबिंब होते हैं। नौ ग्रैवेयक तथा पाँच अनुत्तर के विमानों में सभा नहीं होती। इसलिए वहाँ के चैत्यों में १२० बिंब ही होते हैं। देवलोक के चैत्य के जिनबिंबों का वर्णन : देवलोक के जिनबिंब या चैत्य किसी ने बनाए नहीं हैं। वे अनादिकाल से हैं और अनंतकाल तक रहेंगे। ये शाश्वत बिंब मुख्य रूप से सुवर्ण के होते हैं; परन्तु उनके नख और नेत्र श्वेत अंकरत्न के तथा नेत्र के कोने
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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