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________________ संवेदना - ५ सूत्र अच्छा लगेगा ? इसीलिए राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ वगैरह में से किसी भी कषाय के अधीन होकर, मेरे द्वारा किसी भी जीव के प्रति अयोग्य व्यवहार हुआ हो या किसी भी प्रकार का अपराध हुआ हो तो उस जीव से माफी माँगकर, उसके साथ मैत्री करने में ही मेरा हित है', ऐसी भावना इस सूत्र के एक-एक शब्द से प्रकाशित होती है । इस सूत्र की प्रथम गाथा में आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक तथा कुल एवं गण के किसी भी साधक के प्रति किए गए किसी भी प्रकार के कषायों की दुःखार्द्र हृदय से क्षमा मांगी जाती है; क्योंकि प्रमोद उत्पन्न करानेवाले ऐसी उत्तम आत्माओं के प्रति कषाय करना मतलब मोक्षमार्ग से दूर होना । श्रमण संघ, तीर्थंकर के लिए भी पूजनीय है । ऐसे श्रमण संघ की पूजा, भक्ति और बहुमान भवसागर के पार ले जाता हैं । कषाय के कारण उनके प्रति हुई अरुचि, दुर्भाव या अयोग्य व्यवहार संसार सागर में डूबाता हैं। अतः दूसरी गाथा में ऐसे संघ के एक भी सदस्य के साथ हुए अयोग्य व्यवहार को याद करके, मन में उनके प्रति पूज्यभाव प्रकट करके, दो हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर उन जीवों से क्षमा माँगी गई है । इस तरह श्रमण संघ के किसी भी सदस्य द्वारा हमारे साथ किये गए अयोग्य व्यवहार से उद्भूत द्वेषादि भाव को दूर करके संघ या संघ के सदस्य को सद्भावपूर्वक क्षमा दी गई है । तीसरी गाथा में यह बताया गया है कि गुणवान या गुणहीन, छोटे या बड़े, चौदह राजलोक रूप जगत् के सभी जीवों के प्रति मन, वचन, काया से कोई भी अपराध हुआ हो या उन्हें दुःख पहुँचाया हो, जिससे वैरभाव प्रकट हुआ हो तो उन जीवों को याद करके यह स्वीकार
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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