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________________ १०७ लघु शांति स्तव सूत्र १०७ विशेषार्थ : भक्तानां जन्तूनां34 शुभावहे - भक्त प्राणियों का शुभ करनेवाली हे देवी ! (आपको नमस्कार हो।) शांतिनाथ भगवान की परम भक्त विजयादेवी सम्यग्दृष्टी और अत्यंत शक्तिसंपन्न हैं। प्रभु के भक्तों को श्रेयमार्ग पर आगे बढ़ने में विजयादेवी अनेक प्रकार से सहायक बनती हैं। इसलिए उनको 'शुभंकरा' भी कहा जाता है। नित्यमुद्यते देवि सम्यग्दृष्टीनाम35 धृति-रति-मति-बुद्धि - प्रदानाय36 - सम्यग्दृष्टि जीवों को धृति, रति, मति और बुद्धि प्रदान करने में नित्य उद्यमशील हे देवी ! (आपको नमस्कार हो।) । विजयादेवी सम्यग्दृष्टि जीवों को धृति अर्थात् धैर्य प्रदान करती है। किसी भी कार्य का प्रारंभ करने के बाद विघ्न आने पर दीन न होना, कब कार्य पूर्ण होगा ऐसी उत्सुकता के बिना स्वस्थ चित्त से कार्य पूर्णाहुति का प्रयत्न करना धृति है। सम्यग्दृष्टि जीवों के आन्तरिक चक्षु निर्मल होने के कारण भौतिक सुख की भयंकरता और आत्मिक सुख की महत्ता दोनों को वे अच्छी तरह से जानते हैं। इसलिए उनकी अधिक रुचि आत्मिक सुख पाने में होती हैं, परन्तु आत्मिक सुख को प्राप्त करने का मार्ग आसान नहीं 34.'जन्तु' शब्द का अर्थ 'पशु' करके, उसके द्वारा अत्यंत सकाम भक्तिवाले निम्न कक्षा के पशु' संज्ञक उपासक ग्रहण करने चाहिए और जगत् मंगल कवच की रचना में इन शब्दों के द्वारा उनके पैरों को ग्रहण करना चाहिए । 35.सम्यग्दृष्टि के उपलक्षण से कवच की रचना में कंठ को ग्रहण करना है। 36 ‘सम्यादृष्टीनां धृतिरतिमतिबुद्धिप्रदानाय' नित्यमुद्यते सम्यक् समीचीना दृष्टि दर्शनं सम्यक्त्वं येषां ते सम्यग्दृष्टयः तेषां सम्यग्दृष्टीनां जीवानां धृतिः सन्तोषो, रतिः प्रीतिः, मतिरप्राप्तविषया आगामिदर्शिनी, बुद्धि : साम्प्रतदर्शिनी उत्पत्त्यादिका चतुर्विधा, ततो द्वंद्व एतासां ‘प्रदानाय' वितरणाय नित्यं सदैव उद्यता उद्यमवती सावधाना तत्परा या सा तस्याः सम्बोधने ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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