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________________ २७ लघु शांति स्तव सूत्र शब्द यह बताता है कि उन्होंने अकारण कभी भी शत्रु के ऊपर हमला नहीं किया । जब भी किसी ने आक्रमण किया तब भी वे विजित नहीं हुईं । 'अपराजिता' अर्थात् उनका पुण्य प्रभाव भी ऐसा है कि किसी से भी उनका पराभव या तिरस्कार नहीं हो सकता। इस प्रकार चारों शब्द उनकी विशेषता बताते हैं । अथवा पूज्य मानदेवसूरीश्वरजी महाराज की सेवा में जया, विजया, अजिता और अपराजिता ये चार देवियाँ सदैव हाजिर रहती हैं। उपद्रव का निवारण करने का कार्य मुख्य रूप से विजयादेवी को सौंपा गया है। इसके बावजूद जयादेवी के सर्व विशेषणों द्वारा गर्भित रूप में चारों देवियों को याद किया गया होगा, ऐसा लगता है और भगवती, जयावहे और भवति ये तीनों विशेषण चारों देवियों के लिए होगा फिर भी इस विषय में विशेषज्ञ विचार करें। जगत्यां20 जयतीति21 जयावहे - (हे देवी ! आप) संसार में जय को प्राप्त करती हैं, इसीलिए ही (आप जयावह हैं इसलिए) हे जयावहा! (आपको नमस्कार हो ।) विजयादेवी संपूर्ण जगत् में जय प्राप्त करती हैं और शांतिनाथ भगवान के भक्तों को भी जय प्राप्त करवाती हैं। इसीलिए उनको जयावहा ! नाम से भी संबोधित किया है। भवति - साक्षात् होनेवाली हे देवी ! (आपको नमस्कार हो ।) 20.जगति - शिल्प विषयक शास्त्रों में इस शब्द का अर्थ समवसरण के आस-पास का भाग होता है जहाँ चार देवियाँ द्वारपालिका के रूप में कार्य करती हैं । 21.इति - जिस कारण से विजयादेवी जय को प्राप्त करती हैं, उसी कारण उसे जयावहा कहते हैं अथवा इति वाक्य की समाप्ति का सूचक है ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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