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________________ लघु शांति स्तव सूत्र जिन शांतिनाथ भगवान का नाम इतना प्रभावक है कि, उनके नाम वाले मंत्र को सुनकर विजयादेवी आकर संघ का हित करती है, उन शांतिनाथ भगवान को नमस्कार हों । यह गाथा बोलते हुए साधक को सोचना चाहिए कि, “प्रभु का या प्रभु के वचनों का तो अचिन्त्य प्रभाव है ही; परन्तु प्रभु के नाम की भी कैसी महिमा है कि मात्र उनके नाम का जप करने से भी देवी खुश होकर हमारी सभी कामनाओं को सिद्ध करती हैं ।" अवतरणिका: पूर्व की छट्ठी गाथा में बताया गया कि शांतिनाथ भगवान के नाम मंत्र से प्रसन्न हुई विजयादेवी संघ की आपत्ति दूर करती हैं। इससे सिद्ध होता है कि शांतिनाथ भगवान के नाममंत्र का भी ऐसा प्रभाव है कि उससे इष्ट कार्य सिद्ध हो जाते हैं, फिर भी प.पू. मानदेवसूरि म.सा. आगे की गाथा ७ से १५ में कार्यसाधिका विजयादेवी की प्रसंगोचित स्तुति कर रहे हैं। इन नौ गाथाओं को नवरत्न माला कहा जाता है । इनमें गाथा ७ से ११ तक का पहला विभाग नामस्तुति का है। गाथा १२ से १५ तक का दूसरा विभाग अक्षर स्तुति का है । पहले विभाग में देवी को संघ के लिए मंगल कार्य करने की प्रार्थना की गई है। गाथा: भवतु नमस्ते भगवति ! विजये ! सुजये ! परापरैरजिते ! अपराजिते ! जगत्यां जयतीति जयावहे ! भवति ! ।।७।।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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