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लघु शांति स्तव सूत्र
बनता है, वैसा जाप करनेवाले साधक के ऊपर विजयादेवी संतुष्ट होती हैं अर्थात् प्रसन्न होती हैं । प्रसन्न हुई विजयादेवी लोगों का हित करती हैं, उनके ऊपर आए हुए उपद्रवों का निवारण करती हैं और उन्हें धर्ममार्ग पर आगे बढ़ने के लिए अनुकूलता प्रदान करती हैं।
यहाँ इतना ध्यान में रखना चाहिए कि शासन के अधिष्ठायक देवदेवियाँ अपनी स्तुति से प्रसन्न न होकर जिनको वे स्वामी के रूप में स्वीकार करते हैं, उनका जापादि करनेवाले पर वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। अपने स्वामी की उपेक्षा करके जो उनकी भक्ति करते हैं, उन पर वे कदापि प्रसन्न नहीं होते ।
इति च नुता इस प्रकार स्तुति की गई (विजया देवी)
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इति अर्थात् 'इस प्रकार' और नुता अर्थात् स्तुत । नुता शब्द विजया देवी का विशेषण है। इसीलिए इति च नुता अर्थात् 'इस प्रकार स्तुति की गई विजयादेवी 117
इस गाथा का सामान्य शब्दार्थ देखते हुए ऐसा लगता है कि गाथा में विजयादेवी की कोई स्तुति नहीं की गई है। यहाँ तो 'नमत तं शान्तिम्' द्वारा शान्तिनाथ भगवान की स्तुति की गई है, तो 'इस प्रकार स्तुति की गई विजयादेवी' ऐसा क्यों लिखा गया होगा ? शब्द मात्र पर विचार करें तो यह प्रश्न उचित है । परन्तु 'इति' शब्द के गर्भित अर्थ को गहराई से देखने का प्रयत्न करें तो यहाँ किस प्रकार विजया देवी पूजित हैं, यह ध्यान में आता है ।
17. जैसे ‘इति च नुता' का ऐसा अर्थ होता है कि प्रभु के नाम मंत्र के प्रयोग से खुश होनेवाली और इस प्रकार स्तुत विजया देवी वैसे 'इति च नुता का दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि इस प्रकार अर्थात् इसके बाद की गाथा ७ से १५ में जिस प्रकार विजयादेवी की स्तुति की गई है उस प्रकार स्तुत विजया देवी । विशेष निर्णय बहुश्रुतों के अधीन है ।