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________________ सूत्र संवेदना-५ गाथा : यस्येति नाम-मन्त्र-प्रधान-वाक्योपयोग-कृततोषा । विजया कुरुते जनहितमिति च नुता नमत तं शान्तिम् ।।६।। अन्वयः (भो भव्याः !) यस्येति नाम-मन्त्र-प्रधान-वाक्योपयोग-कृततोषा । इति च नुता विजया जनहितं कुरुते तं शान्तिं नमत ।।६।। गाथार्थ: हे भव्य जीवों ! जिसके (जिन शांतिनाथ भगवान के) इस प्रकार किए गए (पूर्व गाथा २ से ५ में किए गए) नाममंत्रवाले श्रेष्ठ वाक्य के प्रयोग से संतुष्ट हुई और इस तरह जिसकी स्तुति की गई है ऐसी विजया देवी लोगों का हित करती है, उन शांतिनाथ भगवान को आप नमस्कार करें। विशेषार्थ : यस्येति नाम-मन्त्र-प्रधान14-वाक्योपयोग-कृततोषा15 विजया कुरुते जनहितम् - जिनके इस प्रकार (पूर्व गाथा २ से ५ में) किए गये नाम मंत्रवाले श्रेष्ठ वाक्य प्रयोग से - जाप से संतुष्ट हुई विजया देवी लोगों का हित करती हैं । विजयादेवी शांतिनाथ भगवान के ऊपर परम भक्ति और आदर रखती हैं। अतः शांतिनाथ भगवान के नाममंत्र से16 जो जाप श्रेष्ठ 14. 'प्रधान' शब्द के 'मुख्यता' और 'श्रेष्ठ' ऐसे दो अर्थ होते हैं। यहाँ वाक्य प्रयोग का अर्थ जाप करना है। इसी से नाम-मंत्र-प्रधान-वाक्योपयोग अर्थात् 'नाममंत्र है मुख्य जिसमें ऐसा जाप' या 'नाममंत्र होने के कारण ही जो श्रेष्ठ है ऐसा जाप' ऐसा अर्थ किया जा सकता है। 15. नामैव मन्त्रः इति नाममन्त्रः । तेन प्रधानं (श्रेष्ठ) यद् वाक्यं (यद् वचनं) इति नाममन्त्रप्रधान वाक्यं । तस्य उपयोगेन (उच्चार मात्रेण स्मरणेन वा) कतः तोष: (चित्ते संतोष:) यस्याः सा नाममन्त्र-प्रधानवाक्योपयोग-कृततोषा । - श्रीमद् हर्षकीर्तिसूरिनिर्मित टीका 16. गाथा २ से ५ में कुल १६ नाम मंत्र आये हैं । जैसे ॐ नमो नमः भगवते श्री शांतिनाथाय नमः। इसके लिए प्रबोधटीका भाग-२ की आवृत्ति-१ देखनी चाहिए ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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