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सामान्य से सर्व पापों का प्रतिक्रमण
अवतरणिका :
सामान्यतौर से सब व्रतों के अतिचार अशुभ मन, वचन, काया की प्रवृत्ति से होते हैं। इसी कारण से प्रत्येक व्रत के अलग-अलग अतिचार बताकर, अब जिस योग द्वारा जो अतिचार उत्पन्न हुआ हो उन तीनों योगों से उनका प्रतिक्रमण करते हुए कहते हैं :
गाथा:
काएण काइअस्स(स्सा) पडिक्कमे वाइअस्स वायाए। मणसा माणसिअस्स(स्सा) सव्वस्स वयाइआरस्स ।।३४ ।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : सर्वस्य व्रतातिचारस्य कायिकस्य, कायेन। वाचिकस्य वाचा मानसिकस्य मनसा प्रतिक्रामामि ।।३४ ।। गाथार्थ :
सर्व व्रतों के अतिचारों में कायिक अतिचारों का काया द्वारा, वाचिक अतिचारों का वाणी द्वारा, एवं मानसिक अतिचारों का मन द्वारा मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।