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________________ २०६ वंदित्तु सूत्र इस व्रत को स्वीकार करने की इच्छावाला श्रावक व्रत की मर्यादा तक पौषधशाला' , चैत्यगृह या घर के कोई एक भाग में रहता है। शुद्ध एवं सादे वस्त्र पहनता है, अलंकार आदि का त्याग करता हैं और गुरु भगवंत हो तो उनके पास अथवा उनकी साक्षी में दिन, रात्री या अहोरात्री की मर्यादा तक चारों प्रकार के पौषध की अथवा यथाशक्ति पौषध की प्रतिज्ञा करता है। उस प्रतिज्ञा के निर्वाह के लिए समिति-गुप्ति का यथार्थ पालन करता है, शास्त्राभ्यास करता है, शुभचिंतन करता है, अरिहंतादि उत्तम तत्त्व का ध्यान करता है, अहिंसक भाव को प्रकट करने के लिए शास्त्रानुसारी पडिलेहन, प्रमार्जन आदि करता है, दोनों समय आवश्यक (प्रतिक्रमण) करता है और व्रत मर्यादा तक लगभग साधु जैसा जीवन जीता है। यह व्रत जीवन पर्यंत के लिए नहीं है, परंतु चार प्रहर या अष्टप्रहर तक सामायिक व्रत के साथ लिया जाता है, अर्थात् लगभग उतने समय तक श्रावक को साधु जैसा जीवन जीना है। इसी कारण इस व्रत में संयम-जीवन की शिक्षा अन्य व्रतों की अपेक्षा विशेष प्रकार से मिल सकती है। इस व्रत को स्वीकार करने वाला श्रावक चार प्रकार के पौषध की निम्नांकित प्रतिज्ञा करता है - (१) आहार पौषध : आशिंक (देश से) अथवा सम्पूर्णतया (सर्व से) आहार का त्याग। आहार के चार प्रकार हैं - अशन, पान, खादिम एवं स्वादिम। चारों प्रकार के आहार का त्याग करना 'सर्व से आहार त्याग पौषध' है और पानी की छूट 4. सर्व पौषधव्रत (सामायिक की तरह) (१) जिन मंदिर में (सभा मंडप में) (२) साधु मुनिराज के पास (३) अपने घर में अथवा (४) पौषधशाला में - इन चारों में से कोई भी स्थान में कर सकते हैं। - धर्मसंग्रह 5. विरतिफलं नाऊणं, भोगसुहासाउ बहुविहं दुक्खं । साहुसुहकोउएण य, पडिपुण्णं (चउब्विहं) पोसहं कुणइ ।। (१) विरति के फल को जानकर, (२) भोगसुख की आशा से शारीरिक-मानसिक आदि विविध दुःखों को जानकर तथा (३) साधु के सुख की अभिलाषा से श्रावक चार प्रकार का पौषध करता है। - नवपद प्रकरण
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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