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________________ १९४ वंदित्तु सूत्र विशेषार्थ : सम्यक्त्व मूल बारह व्रतों में अंतिम चार व्रतों द्वारा संयम जीवन की शिक्षा प्राप्त होने से उन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं । उन में प्रथम 'सामायिक" विरमण व्रत है। सम अर्थात् समभाव और आय अर्थात् लाभ', जिससे समभाव का लाभ हो उसे सामायिक कहते हैं। 'संयम जीवन' आजीवन पर्यंत पाप - व्यापारों का त्याग करके, समभाव में रहने का एक प्रयत्न है। जब कि सामायिक आदि चारों शिक्षाव्रत मर्यादित काल के लिए पाप - व्यापारों का त्याग कर समभाव में रहने का प्रयत्न है । सर्वसामायिकरूप संयम जीवन का आनंद अवर्णनीय और अनुपम है, इसलिए श्रावक को उसकी तीव्र उत्कंठा रहती है। किन्तु उसमें इतना सामर्थ्य नहीं होता कि सर्वसामायिक स्वीकार कर सके; तो भी सामर्थ्य को पाने के लिए श्रावक जब-जब समय मिले तब-तब शक्ति एवं संयोग अनुसार इस सामायिक व्रत का स्वीकार करता है । योग्य स्थान में, अखंड शुद्ध वस्त्रों का परिधान कर, जीव दया के पालन के लिए मुख विस्त्रिका, चरवला, ऊन का आसन ग्रहण करके सद्गुरु की साक्षी में श्रावक 'सामायिक' व्रत लेता है। सामायिक व्रत स्वीकार करके श्रावक सतत समभाव को प्राप्त करने का यत्न करता है। अच्छा या बुरा, मूल्यवान या अल्प मूल्यवान, अनुकूल या प्रतिकूल, सज्जन या दुर्जन, शत्रु या मित्र, सुख या दुःख, भव या मोक्ष, सब वस्तुओं के प्रति समान भाव, कहीं भी राग नहीं या द्वेष नहीं, यह मेरा एवं यह पराया ऐसा भाव नहीं, यह ठीक है एवं यह ठीक नहीं उसका विचार नहीं, कोई चंदन का विलेपन करे या छुरी से चमड़ी छिले, कोई गालियों की बौछार करे या कोई प्रशंसा के फूल बिखेरे, सर्वत्र समान वृत्ति ऐसा अंतरंग परिणाम समभाव है। ऐसे समभाव की प्राप्ति कराए ऐसी क्रिया को सामायिक कहते हैं । ऐसी सामायिक तो बहुत ऊँची भूमिका में आती है, परंतु ऐसे श्रेष्ठ कोटि के समभाव की पूर्व भूमिका या प्राथमिक तैयारी रूप श्रावक दो घड़ी अर्थात् ४८ मिनट के लिए सामायिक व्रत स्वीकार करता है। इस व्रत को लेते हुए वह ऐसी प्रतिज्ञा करता है कि 'हे भगवंत ! 1 'सामायिक' को विशेष समझने हेतु सूत्र संवेदना - १ 'करेमि भंते' सूत्र देखें । 2 समस्य रागद्वेषकृतवैषम्यवर्जितस्य भावस्यायो लाभः समायः स एव सामायिकम् । अष्टक प्रकरण की टीका -
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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