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________________ १९२ वंदित्तु सूत्र बारबार स्नान, मेकअप इत्यादि करने से मुझे जलचर जीव बनना पड़ेगा । वस्त्र से मेरी शोभा नहीं परंतु मेरे गुणों से मेरी शोभा है । अमर्यादित वस्त्र आदि रखने से मेरा मन हमेशा उनके विचार में व्यस्त और व्यग्र रहता है । वस्त्र, अलंकार, फर्नीचर मेरी सुख शांति का कारण न बनकर मेरे लिए मान, लोभ, क्रोध और माया का कारण बनकर मन की अस्वस्थता का कारण बन जाते हैं । वस्त्र, अलंकार, स्नान, श्रृंगार, गृहशोभा आदि जीने के लिए ज़रूरी नहीं है। अतः मुझे उनके पीछे मेरा मन, धन और समय नहीं बिगाड़ना चाहिए । टी.वी. जूआ, पत्ते, खेल-कूद, फिल्मी पत्रिकाएँ, सर्फिंग, शौक से भोजन आदि में प्रवृत्त होना इत्यादि से मेरे संस्कार बिगड़ते हैं और मेरा परिवार भी उससे प्रभावित होकर जीवन बरबाद कर देता है । इसलिए आत्महित को ध्यान में रखकर मुझे ऐसी निष्प्रयोजन प्रवृत्तियाँ छोड़ देनी चाहिए । • मेहनत कर इकट्ठे किए हुए सुसंस्कार ऐसी प्रवृत्तियों से नष्ट हो जाते हैं और कुसंस्कार पुष्ट होते हैं। थोड़ा भी भोग अनर्थ की परंपरा का सर्जन करने में सक्षम है तो अमयार्दित भोग से मेरा क्या हाल होगा ?
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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