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________________ २५. प्रतिक्रमण करने से क्या लाभ ? गाथा - ३६ सम्मदिट्ठि जीवो० * सम्यग्दृष्टि जीव की आंतरिक परिणति गाथा - ३७ तं पहु सक्किम ० * अल्प भी कर्मबंध का नाश श्रावक कैसे करें ? * पापनाश करने के विषय में दृष्टांत गाथा - ३८ जहा विसं कुट्ठगयं० गाथा - ३९ एवं अट्ठविहं कम्मं० * दृष्टांत का उपनय * भाव श्रावक के क्रियागत ६ गुण गाथा-४० पावो वि मस्सो * पापकर्म का नाश होने के बाद श्रावक की मानसिक स्थिति २६. 'प्रतिक्रमण' आवश्यक की महिमा गाथा - ४१ आवस्सएण एएण० * 'आवश्यक' शब्द का अर्थ * सामायिक, चउविसत्यो, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, पच्चक्खाण का स्वरूप २४५ २४७ २५० २५० २४८ २८. धर्माराधना से उपसंहार २५१ २५२ २५३ २५३ २५६ २६० २६३ २६४ २७. विस्मृत हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण २६४ गाथा- ४२ आलोणा बहुविहा० २६९ * 'आलोचना' शब्द का अर्थ २६९ २७१ २७१ २७२ २७४ गाथा- ४३ तस्स धम्मस्स० * चौबीसों जिन की वंदना गाथा- ४४ जावंति चेइआइं० * शाश्वता अशाश्वता स्थापना जिन की वंदना गाथा- ४५ जावंत के वि साहू० * सर्व साधु भगवंतों की वंदना 19 २९. श्रावक की अभिलाषा गाथा - ४६ चिर-संचिअ - पाव * चौबीस जिन के गुण-स्मरण, गाथा- ४७ मम मंगलमरिहंता * 'समाधि' शब्द का अर्थ ३०. चार दोषों के कारण प्रतिक्रमण २६२ २६२ ३१. सर्व जीवों के प्रति मैत्री का परिणाम जाप आदि का अचिंत्य प्रभाव २८० २७५ २७६ २७६ २७९ ३२. अंतिम मंगल गाथा- ४८ पडिसिद्धाणं करणे० २८७ २८३ २८५ २९१ गाथा ४९ खामि सव्वजीवे० * सर्व जीवों के हित की भावना २९१ २९४ २९४ गाथा -५० एवमहं आलोइअ० * तीन प्रकार के मंगल का फल २९५
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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